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प्रस्तावना

       साहित्य भाषाओं की सीमाओं के परे होता है। तमाम विधायें एक भाषा में जन्म लेकर दूसरी भाषाओं के साहित्य में स्थापित हुईं। हिन्दी भाषा साहित्य इससे परे नहीं रहा।

       बात छायावाद से शुरू करते हैं। छायावाद काल के काव्य में गीत एवं प्रगीत को प्रमुखता मिली इसीलिए इस काल को प्रगीत काल भी माना जाता है। इस काल के कवियों ने पश्चिमी स्वच्छंदतावादी काव्य के प्रभाव में प्रगीत शैली को अपनाया। वे सर्वाधिक अंग्रेजी प्रगीत काव्य धारा से प्रभावित थे।

       स्वरूप, पाठ्य विशेषताओं और गेयता के आधार पर अंग्रेजी प्रगीत और भारतीय गीत में काफी भिन्नता है। प्रगीत संगीत की लय में नहीं गाए जाते किंतु उनमें पर्याप्त माधुर्य और प्रवाह होता है। संगीत के विधान के अनुरूप गेय पद रचना, जिसमें काव्य एवं संगीत तत्व का संतुलन रहता है, गीत कहलाती है। पश्चिमी विद्वान पालग्रेव के अनुसार, ’प्रगीत (लिरिक) की रचना किसी एक ही विचार भावना अथवा परिस्थिति से संबंधित होती है तथा उसकी रचना शैली संक्षिप्त तथा भावरंजित होती है।’ शैली एवं आकार की दृष्टि से प्रगीत के छः स्वरूप हैं-

1. सॉनेट (चतुष्पदी)

2. ओड (संबोधन प्रगीत)

3. एलिजी (शोक प्रगीत)

4. सेटायर (व्यंग्य प्रगीत)

5. रिफ्लेक्टिव (विचारात्मक प्रगीत)

6. डाइडेक्टिव (उपदेशात्मक)

     

सॉनेट

       सॉनेट इटैलियन शब्द sonetto का लघु रूप है। यह छोटी धुन के साथ मेण्डोलियन या ल्यूट (एक प्रकार का तार वाद्य) पर गायी जाने वाली कविता है।

जन्म

       सॉनेट का जन्म कहाँ हुआ, इस पर मतभेद हैं। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सॉनेट का जन्म ग्रीक सूक्तियों (epigram) से हुआ होगा। प्राचीन काल में epigram का प्रयोग एक ही विचार या भाव को व्यक्त करने के लिए होता था। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इंग्लैण्ड और स्कॉटलैंड में प्रचलित बैले से पहले सॉनेट का अस्तित्व रहा है। यह भी मान्यता है कि यह सम्बोधिगीत (ode) का ही इटैलियन रूप है। एक मान्यता कहती है कि इस विधा का जन्म सिसली में हुआ और इसे जैतून के वृक्षों की छॅंटाई करते समय गाया जाता था।

इतिहास और स्वरूप

       सॉनेट को विशेष रूप से तीन आयामों में देखा-परखा गया है-

1. आकृति की विशिष्टता

2. भाव की विशिष्टता के साथ वैयक्तिक अभिव्यक्ति।

3. सर्वांगपूर्णता, कल्पना, प्रेरणा और माधुर्य।

 

इटली

       तेरहवीं शताब्दी के मध्य में सॉनेट का वास्तविक रूप सामने आया। फ्रॉ गुइत्तोन को सॉनेट का प्रणेता माना जाता है। इटली के कवि केपल लॉप्ट ने सॉनेट की खोज के लिए फ्रॉ गुइत्तोन को ‘काव्य साहित्य का कोलम्बस’ कहा है। फ्रॉ गुइत्तोन ने स्थापित किया कि सॉनेट की प्रत्येक पंक्ति में दस मात्रिक ध्वनियाँ होना चाहिए। गुइत्तोन के सॉनेट में कुल चौदह चरण होते हैं जो दो भागों में बॅंटे होते हैं-

 

1- अष्टपदी- अष्टपदी में पहली से चौथी की, चौथी से पाँचवीं की और पाँचवीं से आठवीं पंक्ति की तुक मिलायी जाती है। इसी तरह दूसरी से तीसरी की, तीसरी से छठवीं की और छठवीं से सातवीं पंक्ति की तुक मिलती है।

2- षष्ठपदी- षष्ठपदी में प्रायः पहली से चौथी की, दूसरी से पाँचवीं की और तीसरी से छठवीं पक्ति की तुक मिलायी जाती है। यह तीन-तीन चरणों में विभाजित रहती है। इसकी तुकान्त योजना में कुछ भिन्नताएँ भी हो सकती हैं।

       गुइत्तोन और उसके पहले के सॉनेट रचनाकारों ने Guido Bonatti द्वारा ग्यारहवीं सदी में स्थापित सांगीतिक अनुशासन को अपनाकर सॉनेट की संरचना को गढ़ा। गुइत्तोन का मानना था कि कोई भी सॉनेट लेखक अपनी सांगीतिक पद्धति भी बना सकता है।

       इसके बाद इटली के ही पेट्रार्का ने सॉनेट लिखे। पेट्रार्का की मान्यता थी कि सॉनेट का अन्त शुरूआत से अधिक लयात्मक होना चाहिए। पेट्रार्का और दान्ते ने गुइत्तोन सॉनेट में बदलाव भी किये। पेट्रार्का ने इसके लिए तीन तुकें निर्धारित की हैं। बाद में सॉनेट को तासो और अन्य कवियों ने भी अपनाया। इटली में प्रमुखतः सॉनेट के पाँच रूप मिलते हैं-

1. Twelve-syllabled lines (द्वादश मात्रिक सॉनेट)- इसमें एक पंक्ति में द्वादश मात्रिक ध्वनियाँ होती हैं। स्वर पर जोर नहीं होता, अन्त्याक्षर से तुक मिलायी जाती है।

 

2. Caudated or Tailed (पुच्छल सॉनेट)- इसमें दो या पाँच या इससे अधिक पंक्तियों का अनपेक्षित विस्तार होता है ।

3. Mute- यह एकाक्षरी तुकान्त वाला सॉनेट हास्य और व्यंग्य के लिए उपयुक्त होता है। इसमें दो अक्षर के तुकान्त भी होते हैं।

4. Linked or Interlaced (अन्तर्ग्रथित सॉनेट) - इसमें कोई कथा, भाव या विचार संगुम्फित होता है।

5. Conutinuous or Iterating (अविच्छिन्न सॉनेट)- इसमें ज़्यादातर एक ही तुक की सप्रवाह पुनरावृत्ति होती है। कभी दो तुकें भी मिलायी जाती हैं।

इंग्लैण्ड

       सॉनेट को फ्रांस के कवियों, इंग्लैंड में सरे और स्पेन्सर तथा स्पहानी कवियों ने भी अपनाया। जर्मनी में पेट्रार्कन शैली के सॉनेट रचे गये। अंग्रेजी में इसे सिडनी, शेक्सपियर, मिल्टन, वर्डसवर्थ और कीट्स ने रचा।

       सोलहवीं सदी में सर्वप्रथम Thomas wyat और Henry Howord (सरे) ने अँग्रेज़ी में सॉनेट लिखे। ये दोनों इटली में निवास के दौरान पेट्रार्का की कविताओं से प्रभावित हुए। Thomas wyat इटैलियन मॉडल को अपनाकर सॉनेट लिखते रहे। Henry Howord ने चौदह पंक्तियों की इतालवी शैली के साथ प्रयोग करते हुये दो तुकान्त संरचना अपनायी जो कि अँग्रेज़ी भाषा के लिए अधिक उपयुक्त थी-

A-b-A-b

C-D-C-D

F-F-F-F

G-G

       स्पेन्सर, शेक्सपियर और मिल्टन तीनों के सॉनेट इतालवी स्वरूप से भिन्न हैं। इनमें अष्टपदी और षष्टपदी के बीच अन्तराल दिखाई पड़ता है, लेकिन दोनों बँटे हुए नहीं है।

       स्पेन्सर ने इटैलियन और आरंभिक अँग्रेज़ी सॉनेट संरचनाओं को मिलाकर नया सॉनेट फॉर्म तैयार किया और इसी बदले रूप के साथ उन्होंने प्रेम सॉनेट ‘Amoretti’ शीर्षक से लिखे। एलिजाबेथ काल में बड़ी संख्या में लेखकों ने सॉनेट लिखे। फिलिप सिडनी ने इन्हें पूर्णता और सुन्दरता प्रदान की।

       स्पेन्सर के फॉर्मेट को शेक्सपियर और मिल्टन ने नहीं अपनाया क्योंकि इसमें छांदिक स्वान्त्रय नहीं था। शेक्सपियर ने डेनियल और ड्राइटन के सॉनेट ढाँचे को अपनाया। शेक्सपियर के सॉनेट अष्टपदी और षष्टपदी के बजाय तीन चतुष्पदियों और एक द्विपदी लय से बँधे हैं। शेक्सपियर की 'Sonnet 116' में से कुछ पंक्तियाँ संदर्भ के लिए प्रस्तुत हैं।

‘Let me not to the marriage of true minds (a)
Admit impediments, love is not love (b)*
Which alters when it alteration finds, (a)
Or bends with the remover to remove.’ (b)*


       मिल्टन के सॉनेट अष्टपदी और षष्टपदी के बीच नैरन्तर्य के लिए जाने जाते हैं। मिल्टन की एक रचना 'On His Blindness' की कुछ पंक्तियां यहाँ उदाहरण के रूपमें प्रस्तुत हैं जिससे इतालवी प्रारूप का आभास मिलता है-

‘When I consider how my light is spent (a)
 Ere half my days, in this dark world and wide, (b)
 And that one talent which is death to hide, (b)
 Lodged with me useless, though my soul more bent’ (a)


       इस प्रकार अंग्रेजी सॉनेट रचना की चार कोटियाँ निर्धारित की जा सकती हैं-

1. पेट्रर्कन

2. स्पेन्सरियन

3. शेक्सपीरियन

4. मिल्टानिक

भारत

       भारतीय उपमहाद्वीप में सॉनेट असमी, बंगाली, डोंगरी, अंग्रेजी, गुजराती, हिन्दी, कश्मीरी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, सिन्धी, उर्दू आदि सभी भाषाओं में लिखे गये।

उर्दू

       ऐसा माना जाता है कि अज़मतुल्ला खान ने बीसवीं सदी के प्रारम्भ में इस विधा से उर्दू साहित्य का परिचय कराया। अख्तर जूनागढ़ी, अख्तर शीरानी, नून मीम राशिद, मेहर लाल सोनी, ज़िया फतेहबादी, सलाम मछलीशहरी, और वाज़िर आगा ने इस विधा पर हाथ आजमाए। ज़िया फतेहबादी के संग्रह ‘मेरी तस्वीर’ के एक सॉनेट, जो कि शेक्सपियर के सॉनेट के बहुत करीब है, की पंक्तियाँ देखें-

‘नज़र आई न वो सूरत, मुझे जिसकी तमन्ना थी (c)

बहुत ढूंढा किया गुलशन में, वीराने में, बस्ती में (d)

मुनव्वर शमा ऐ मेहर ओ माह से दिन रात दुनिया थी (c)

मगर चारों तरफ था घुप अंधेरा मेरी हस्ती में’ (d)

हिन्दी

       हिन्दी में सॉनेट बीसवीं सदी में आया। हिन्दी के कुछ कवियों ने इसे अपनाया जरूर लेकिन इस विधा पर बहुत अधिक ध्यान केन्द्रित नहीं किया गया।

       त्रिलोचन शास्त्री हिन्दी काव्य में सॉनेट के स्थापक माने जाते हैं। त्रिलोचन ने लगभग ५५० सॉनेटों की रचना की है।  त्रिलोचन ने इस विधा का भारतीयकरण किया। इसके लिए उन्होंने रोला छंद को आधार बनाया तथा बोलचाल की भाषा और लय का प्रयोग करते हुए चतुष्पदी को लोकरंग में रंगने का काम किया। उनके सॉनेट में 14 पंक्तियाँ होती हैं और प्रत्येक पंक्ति में 24 मात्रायें। सॉनेट के जितने भी रूप-भेद साहित्य में किए गए हैं, उन सभी को त्रिलोचन ने आजमाया। त्रिलोचन द्वारा इस विधा पर किए गए प्रयोगों की बानगी इन उदाहरणों में देखें-

'विरोधाभास' 
‘संवत पर सवत बीते, वह कहीं न टिहटा,
पाँवों में चक्कर था। द्रवित देखने वाले
थे। परास्त हो यहाँ से हटा, वहाँ से हटा,
खुश थे जलते घर से हाथ सेंकने वाले।‘

आरर-डाल

‘सचमुच, इधर तुम्हारी याद तो नहीं आयी,

     झूठ क्या कहूं। पूरे दिन मशीन पर खटना,

बासे पर आकर पड़ जाना और कमाई

     का हिसाब जोड़ना, बराबर चित्त उचटना।‘

बिल्ली के बच्चे

‘मेरे मन का सूनापन कुछ हर लेते हैं

     ये बिल्ली के बच्चे, इनका हूं आभारी।

     मेरा कमरा लगा सुरक्षित, थी लाचारी,

इनकी माँ ले आई। सब अपना देते हैं’

प्रभो, पुत्र वह माँग  रही है

‘प्रभो, पुत्र वह माँग रही है।‘ ‘लिखा नहीं है।‘

फिर गोस्वामी तुलसीदास और क्या कहते।

तो भी दासी की विनयों में बहते-बहते।

तीन बार पूछा। प्रभु बोले, ‘लिखा नहीं है।‘

नामवर सिंह की एक रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें।

‘बुरा जमाना, बुरा जमाना, बुरा जमाना

लेकिन मुझे जमाने से कुछ भी तो शिकवा

नहीं, नहीं है दुख कि क्यों हुआ मेरा आना

ऐसे युग में जिसमें ऐसी ही बही हवा’

       त्रिलोचन की एक पूरी सॉनेट यहाँ उदाहरण के रूप् में प्रस्तुत है जो इसके स्वरूप, गेयता और तुकांत के लिए अच्छा उदाहरण हो सकती है-

सॉनेट का पथ

इधर त्रिलोचन सॉनेट के ही पथ पर दौड़ा;

              सॉनेट, सॉनेट, सॉनेट, सॉनेट; क्या कर डाला

             यह उस ने भी अजब तमाशा। मन की माला

गले डाल ली। इस सॉनेट का रस्ता चौड़ा

 

अधिक नहीं है, कसे कसाए भाव अनूठे

     ऐसे आएँ जैसे क़िला आगरा में जो

           नग है, दिखलाता है पूरे ताजमहल को;

गेय रहे, एकान्विति हो। उस ने तो झूठे

ठाटबाट बाँधे हैं। चीज़ किराए की है।

    स्पेंसर, सिडनी, शेक्सपियर, मिल्टन की वाणी

    वर्ड्सवर्थ, कीट्स की अनवरत प्रिय कल्याणी

    स्वर-धारा है, उस ने नई चीज़ क्या दी है।

 

    सॉनेट से मजाक़ भी उसने खूब किया है,

    जहाँ तहाँ कुछ रंग व्यंग्य का छिड़क दिया है।

       त्रिलोचन के बाद इस विधा पर बहुत कम काम देखने को मिलता है। आज जरूरत है इस विधा को हिन्दी में स्थापित करने की।

                                                              - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

 

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Replies to This Discussion

आदरणीय बृजेश जी, अंग्रेजी काव्य विधा सॉनेट का अच्छा परिचय दिया है आपने ! बहुत बहुत आभार !

आदरणीय पियूष जी आपका हार्दिक आभार! भाई जी अब तो यह विधा हिन्दी में है। वैसे भी यह इटली की विरासत थी, अंग्रेजी ने भी उधार ली थी।

जी, शुक्रिया !

आपका स्वागत है भाई! इस विधा के संबंध में कुछ तथ्य आपके पास हों तो आप अवश्य साझा करिए यहां पर!
सादर!

कोशिश रहेगी, भाई जी !

इस विशद आलेख पर फिर से आता हूँ, भाईजी. 

जी अवश्य!

आदरणीय बृजेश जी!
आपने काव्य विधा सॉनेट का विस्तृत परिचय देकर बहुत सारी जिज्ञासा सुलझा दी है।
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय 

आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार!

आदरणीय बृजेश जी,

आपने सॉनेट विधा पर एक विस्तृत शोध परक आलेख प्रस्तुत किया.. इस श्रम साधना के लिए आप बधाई के पात्र हैं

आपने अवसर दिया है ..कि आज हम इस विधा पर खुल कर चर्चा कर सकें..

जहाँ तक मेरी व्यक्तिगत मान्यता है , हिन्दी में अभी सॉनेट बहुत ही भ्रामक स्थिति में है?

किसी और नें हिन्दी में इस विधा को कैसे प्रस्तुत किया....यह जानने से पहले... मैं आपसे पूछना चाहती हूँ कि क्या अपने अंग्रेजी में इस विधा के शिल्प को ठीक से पढ़ा है , जाना है, और समझा है?

सॉनेट के जो मूलभूत नियम हैं यदि हम हिन्दी में उनका पालन ही नहीं करेंगे तो क्या १४ पंक्तियों में सिर्फ तुकबंदी का पालन करके साढे तीन  बंद लिख देने से कोई भी रचना सॉनेट हो जायेगी..

मेरी नज़र में शायद ऐसा करने वाले अंगेजी भाषा की एक सुप्रतिष्ठित विधा के साथ खिलवाड़ सा ही कर रहे हैं..

मैं यहाँ अत्यंत आवश्यकता समझते हुए,(विशेष अनुरोध द्वारा एडमिन जी से इजाज़त ले कर ) सॉनेट विधा के लिए एक बाहरी लिंक दे रही हूँ 

http://www.sonnetwriters.com/how-to-write-a-sonnet/

हिन्दी में इस विधा के स्वरुप पर विस्तार में आने से पहले यह भी ज़रूरी है कि हम कृपया इस लिंक पर सॉनेट विधा को बारीकी से पढ़ें, समझें  और फिर मन में आये संशयों पर चर्चा कर इस विधा को हिन्दी में रूपांतरित करने के प्रयास को सार्थक और सही आयाम दें.

सादर.

आदरणीया प्राची जी, आपका हार्दिक आभार!

आपके इस मत से कि हिन्दी में सॉनेट भ्रामक स्थिति में है, मैं सहमत नहीं हूँ। हिन्दी में सॉनेट बहुत लिखे गये हैं। 550 तो त्रिलोचन जी ने ही लिखे हैं। किसी भी विधा में इतनी रचनायें उस विधा की स्थापना के लिए पर्याप्त होती हैं।

//किसी और नें हिन्दी में इस विधा को कैसे प्रस्तुत किया....यह जानने से पहले... मैं आपसे पूछना चाहती हूँ कि क्या अपने अंग्रेजी में इस विधा के शिल्प को ठीक से पढ़ा है, जाना है, और समझा है?//

आपका यह प्रश्न मुझे असहज कर गया। मैं अंग्रेज़ी नहीं जानता तो फिर उसके शिल्प को कैसे समझूँ? ऊपर से शेक्सपियर की अंग्रेज़ी, जो वास्तव में कितनी अंग्रेज़ी है?

मेरे लिए हिन्दी में त्रिलोचन ने कैसे प्रस्तुत किया है, यह अधिक महत्वपूर्ण है बनिस्बत इसके कि अंग्रेज़ी में शेक्सपियर ने इसको कैसे लिखा और फिर अंग्रेज़ी शिल्प को ही क्यों समझा जाए, इटैलियन शिल्प को क्यों नहीं? (जिसका मैंने संक्षेप में जिक्र भी किया है)

आपने सॉनेट के मूलभूत नियम की बात की है। यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि सॉनेट के मूलभूत नियम क्या हैं?

//तो क्या १४ पंक्तियों में सिर्फ तुकबंदी का पालन करके साढे तीन  बंद लिख देने से कोई भी रचना सॉनेट हो जायेगी..//

मुझे नहीं लगता कि मैंने लेख के किसी अंश में ऐसे किसी नियम का प्रतिपादन किया है।

//कृपया इस लिंक पर सॉनेट विधा को बारीकी से पढ़ें, समझें  और फिर मन में आये संशयों पर चर्चा कर इस विधा को हिन्दी में रूपांतरित करने के प्रयास को सार्थक और सही आयाम दें.//

आपने जो लिंक दिया उसके लिए आपका विशेष आभार। इससे भी कुछ जानने को मिला। यह लिंक अंग्रेज़ी सॉनेट लिखने की विधि का निर्धारण करता है हिंदी के नहीं। इस संबंध में मेरे कुछ स्पष्ट कथन हैं।

1- क्या हिंदी में लिखने के लिए अंग्रेजी पढ़ना होगा?

2- क्या यह अधिक उपयुक्त नहीं होता कि आप लिंक देने के बजाय कुछ मूलभूत नियमों का यहाँ जिक्र कर देतीं? क्या हिंदी में किसी विधा को स्थापित करने के लिए हिंदी के किसी मूर्धन्य कवि के प्रयास पर्याप्त नहीं कि हमें अंग्रेजी कवियों को फिर से उदाहरण बनाना पड़े?

3- मेरे मन में कोई संशय नहीं है।

4- हिंदी में इस विधा को रूपांतरित करने की नहीं बल्कि त्रिलोचन तथा अन्य कवियों के प्रयासों को आगे ले जाने की आवश्यकता है।

//मेरी नज़र में शायद ऐसा करने वाले अंगेजी भाषा की एक सुप्रतिष्ठित विधा के साथ खिलवाड़ सा ही कर रहे हैं..//

मैं समझता हूँ कि जब मेरे प्रयास को खिलवाड़ की श्रेणी में रख दिया जाए उस दशा में चर्चा का कोई अर्थ नहीं रह जाता इसलिए मैं अपनी ओर से इस चर्चा को यहीं विराम देता हूँ।

अंत में यह जरूर उल्लेख करना चाहूँगा कि यह विधा अंग्रेजी की नहीं बल्कि इटैलियन है। अंग्रेजी ने भी इसे वहाँ से उधार लिया था। अंग्रेजों की औपनिवेशिक नीतियों ने जिस तरह अंग्रेजी को सर्वमान्य बना दिया उससे साहित्यिक विधाओं पर उसकी दावेदारी मजबूत नहीं हो जाती।

साढ़े तीन बंद और तुकबंदी के सहारे 14 पंक्तियाँ लिखकर यदि हिन्दी कवियों ने कोई अपराध किया है तो आदरणीया, फिर शेक्सपियर, मिल्टन आदि ने भी तो गुइत्तोन और पेट्रार्का के बनाए नियमों में फेरबदल करके वह अपराध किया है। यदि आप शब्दकोष तलाशें तो सॉनेट के सारे विविध रंग आपको दिख जाएंगे। सॉनेट केवल iambic pentameter से ही परिभाषित नहीं होती।

त्रिलोचन, जिनको मैंने इस लेख में आधार बनाया है, कोई चलताऊ नाम नहीं हैं कि उनकी रचनाधर्मिता पर यूँ प्रश्नचिन्ह लगा दिया जाए। हिंदी साहित्य के एक युग की त्रयी के एक स्तंभ त्रिलोचन हिंदी ही नहीं अंग्रेजी सहित कई भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे। उनकी रचनाधर्मिता और प्रयोगशीलता एक उदाहरण रही है। उन्होंने किसी विधा पर किसी नियम का यदि प्रतिपादन किया है तो वह बहुत सोच समझकर ही किया होगा, ऐसा मैं मानता हूँ। वैसे, यह पहली बार ही मैं देख रहा हूँ कि किसी ने सॉनेट पर त्रिलोचन की प्रयोगधर्मिता पर प्रश्नचिन्ह लगाए हैं।

अंग्रजी शब्दों की संरचना में तीन स्टेप हैं लेटर, सिलेबल और शब्द। यानी अक्षर, अक्षर समूह और शब्द। अंग्रेजी में पूरा शब्द एक ही ध्वनि के साथ उच्चारित नहीं किया जाता बल्कि शब्द के किन्हीं अक्षर समूहों पर अधिक बल होता है शेष पर नहीं। यह अंग्रेजी के उच्चारण की विशेषता है कि वहाँ कुछ अक्षर शब्द में शामिल होते हुए भी उच्चारण में अपने लिए स्थान नहीं बना पाते। हिन्दी के उच्चारण की पद्धति अलग है। यहाँ अक्षरों से शब्द बनते हैं और उच्चारण के समय सभी अक्षरों पर समान बल दिया जाता है। ऐसे में सिलेबल को आधार बनाकर हिन्दी में कोई रचना कैसे लिखी जा सकती है, यह मेरी समझ के परे है। हाइकू जब हिन्दी में आया तो उसके लिए वर्ण आधारित नियम का प्रतिपादन किया गया और उसे सबने स्वीकारा भी। हाइकू लिखते समय हम सिलेबल के नियम का पालन क्यों नहीं करते?  

मैंने पिछली बार जब सॉनेट लिखने का प्रयास किया था तो अपनी टिप्पणी में आपने इस बात पर जोर दिया था कि अंग्रेजी के सिलेबल की ध्वनियों को ध्यान में रखकर कुछ बहर निर्धारित की जानी चाहिए जिस पर हिन्दी में सॉनेट लिखी जाएं। मैं इसे सीधे नकारना ही उचित समझता हूँ क्योंकि न तो हिंदी में सिलेबल का कोई कान्सेप्ट है और न ही बहर का। यह अलग बात है कि गज़ल लिखने के मोह में हिन्दी भाषा-भाषी बहर शब्द जान गए हैं और गीतिका जैसे छंदों को बहर के आधार पर सरलता से लिखने लगे हैं। परन्तु, सॉनेट सिर्फ सिलेबल की ध्वनियों के क्रम का ही नाम नहीं है। क्या किसी बहर में लिखी गयी 14 पंक्तियों की तुकांत रचना सॉनेट हो सकती है? क्या तब इटली में जन्मी और तमाम भाषाओं में अपने रंग-रूप के साथ स्थापित इस विधा के साथ खिलवाड़ नहीं होगा?

अब आपके लिंक की भी बात कर ली जाए। वहाँ  पर अंग्रेज़ी सॉनेट का जो उदाहरण दिया है उसका क्रम यह है।

//he TURNED the FOURteenth GLASS and SAID, “beGIN.”//
काश, आपने मेरे इस लेख के प्रयास को गम्भीरता से लिया होता और प्रस्तुत उदाहरणों पर ध्यान दिया होता।

//आरर डानौरी है। यह बिलकुल खोटी//

यहाँ हिन्दी के सारे नियमों का पालन करते हुए भी उच्चारण के जोर के आधार पर उसी लय को बांधने का प्रयास किया गया है। केवल अंग्रेजी नहीं और केवल शेक्सपियर नहीं, त्रिलोचन ने सॉनेट पर अभी तक जो भी प्रयोग हुए हैं उन सबका अध्ययन करते हुए इस विधा को हिंदी में स्थापित करने का प्रयास किया है। मैं इस विषय पर बिलकुल स्पष्ट हूँ। मुझे कोई संशय नहीं है। पूरी दृढ़ता के साथ मैं यह बात कहना चाहता हूँ कि त्रिलोचन ने सॉनेट को लेकर जो प्रयोग किए हैं वो अनुपम हैं और हिन्दी में इस विधा की स्थापना के लिए पर्याप्त और अनुकरणीय हैं।

अपनी ओर से चर्चा को समाप्त करते हुए मेरा सिर्फ यह निवेदन है कि इस लेख को मैंने अपनी अल्पबुद्धि से सिर्फ सॉनेट से परिचय कराने के लिहाज से ही प्रस्तुत किया था। इसमें अपनी ओर से किसी नियम के प्रतिपादन का प्रयास मेरे द्वारा नहीं किया गया। इस विधा में इतनी विविधता है कि शायद सिर्फ एक लेख में उसे समेटना संभव नहीं। अपनी क्षमताओं में मुझे तो यह संभव नहीं दिखा। प्रयास यह था कि परिचय पर होने वाली चर्चा का लाभ उठाकर अपनी समझ को विकसित करते हुए आगे शिल्पगत विविधता और हिंदी में किए गए प्रयोगों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अगले लेख में इस विधा पर आगे बढ़ने का प्रयास किया जाएगा लेकिन शायद मेरे प्रारंभिक प्रयास पर्याप्त नहीं थे या फिर इस मंच पर नया होने के कारण अभी मैं इतना परिपक्व नहीं हो पाया कि किसी विधा पर अपना पक्ष रख सकूँ।

अपने कथन को समाप्त करते हुए आगे प्रयास करूँगा कि इस विधा पर कोई रचना या चर्चा तभी करूँ जब सभी भाषाओं में इस विधा पर किए गए प्रयोगों को ठीक तरह से समझ लूँ जिससे आगे फिर किसी भाषायी आग्रह को लेकर प्रश्न न खड़े हों।

सादर!

आदरणीय बृजेश जी 

कई कई संशयों को सुलझाती और हिन्दी में सॉनेट को एक खुले नज़रिए से दिखाते कई मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डालती आपकी विस्तृत टिप्पणी के लिए  आपका धन्यवाद. 

आज त्यौहार की व्यस्तताओं के कारण मुझे भी कुछ समय चाहिये इस पर चर्चा करने के लिए... मैं दुबारा इस पर आती हूँ 

सादर.

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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
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Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
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Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
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