दुर्मिल सवैया के विषय में चर्चा कर चुके हैं जिसका सूत्र सगण X 8 होता है. सगण की इस आवृति या वर्ण वृत के अंत में एक गुरु के जोड़ दिये जाने से सुन्दरी सवैया का होना माना जाता है. इसे कई विद्वानों ने माधवी सवैया कहा है.
अतः, सुन्दरी सवैया = सगण X 8 + गुरु
यानि, सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा + गुरु
या, ।। ऽ ।। ऽ ।। ऽ ।। ऽ ।। ऽ ।। ऽ ।। ऽ ।। ऽ + ऽ
सुन्दरी सवैया के उदाहरण हेतु महाकवि चच्चा विरचित एक कारुणिक छंद प्रस्तुत है -
बर बुद्धि बिरंचि ने भाल चचा, कुछ ऐसी लकीर खिंची बिरची है ।
कि सदैव विपत्ति बवंडर में, दुख अंधड़ में जनु होड़ मची है ॥
तिहुँ पे नित दानवी दीन दसा, सिर पै चढ़ि नङ्ग उलङ्ग नची है ।
फिर कौन कथा पगई जो गई, भगवान भला भगई तो बची है ॥
प्रथम पद विन्यास -
बर बुद् (लघु लघु गुरु) / धि बिरं (लघु लघु गुरु) / चि ने भा (लघु लघु गुरु) / ल चचा (लघु लघु गुरु) / कुछ ऐ (लघु लघु गुरु) /
<-----------1-----------> <-------------2------------> <------------3--------------> <-------------4---------> <-----------5------------->
सी लकी (लघु लघु गुरु) / र खिंची (लघु लघु गुरु) / बिरची (लघु लघु गुरु) / है (गुरु)
<------------6------------><-------------7-------------> <-----------8----------><---9--->
उपरोक्त विन्यास में स्पष्ट है कि तीसरे और छठे सगण में क्रमशः ने और सी का गण विधान के अनुसार लघु रूप लिया गया है. इस नियम से संबंधित अधिक जानकारी सवैया लेख में की गयी है.
ज्ञातव्य :
प्रस्तुत आलेख प्राप्त जानकारी और उपलब्ध साहित्य पर आधारित है.
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