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लता,फूल,रज के हर कण में,नभ से झाँक रहे घन में,
राधे-कृष्णा की छवि दिखती,वृन्दावन के निधिवन में।

प्रेम अलौकिक व्याप्त पवन में,प्रणय गीत से बजते हैं,
राधा-माधव युगल सलोने,निशदिन वहाँ विचरते हैं।

छन-छन पायल की ध्वनि गूँजे, मानो राधा चलती हों,
या बाँहों में प्रिय केशव के,व्याकुल होय मचलती हों।

बनी वल्लरी लिपटी राधा,कृष्ण वृक्ष का रूप धरे,
चाँद सितारे बनकर चादर,निज वल्लभ पर आड़ करे।

मधुर दिव्य लीला प्रभु करते,सकल सृष्टि मधुपान करे,
कुहक पपीहा बेसुध नाचे,कोयल सुर अति तीव्र भरे।

रसिक श्याममय कुञ्ज गलिन में,हँसी-ठिठोली की बातें,
प्रेम सुधा रस पीते-पीते,बीते दिन बीते रातें।

जग ज्वालाएं जलती पल में,दिव्य धाम वृन्दावन में,
परम प्रेम आनंद बरसता,कृष्ण प्रिया के आँगन में।

'शुचि' मन निर्मल है तो जग यह,कृष्णमयी बन जाता है।
प्रेम भाव ही आठ याम नित,सकल जगत पर छाता है।


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Replies to This Discussion

वाह शुचि बहन लावणी छंद में निधिवन की अपार महिमा का सुंदर वर्णन।.बधाई हो।

प्रोत्साहन हेतु आभार भैया।

नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर

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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
"बहुत बढ़िया अभ्यास।"
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Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-169
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