नगर सभ्यता के परित्यागी।
भोले शंकर शिव बैरागी।।
*
जग जीवित हो कष्ट उठाया।
कालकूट को कंठ समाया।।
अजब अनौखी औघड़ माया।
भक्त अभक्त हर कोई भाया।।
इन के पूजक हम बड़भागी।
भोले शंकर शिव बैरागी।।
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मुकुट न ही वैजयंती माला।
अम्बर तज पहनें मृगछाला।।
अपना जीवन ढंग निराला।
गेह बनाया वृहद हिमाला।।
निर्धनतम के हैं अनुरागी।
भोले शंकर शिव बैरागी।।
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गंगा को जो बाँध जटा में।
भरते बेहद नीर घटा में।।
सम्पूरित जो नहीं बटा में।
उनसा बोलो कौन छटा में।।
विषधर भूषण वाले नागी।
भोले शंकर शिव बैरागी।।
*
एक अकेले औघड़दानी।
जो माँगा देने की ठानी।।
नारी मन की पूर्ण कहानी।
उनसी बोलो किसने जानी।।
कर वामा को तन सहभागी।
भोले शंकर शिव बैरागी।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
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