काल का नियम कठोर है होता
सभी को इसको वरना हो
श्री राम अछूते रह सके न, क्या मानव जीवन का वर्णन हो||
आते साधू रूप में काल देवता
श्री राम से वचन एक लेना हो
गुप्त बात कोई सुन सके न, इस बात की पुष्टि प्रथम हो||
मृत्यु दंड का भागी होगा
विघ्न वार्तालाप में डाले जो
लक्ष्मण को द्वारपाल बनाया, हनुमान न उपस्थित उस क्षण हो||
पूरा हुआ अब समय आपका
वैंकुंठ धाम अब चलना हो
कर्म सभी तो हो चुके हैं, अवतरण जिनकी खातिर हो||
दुर्वासा ऋषि आ तब पहुँचते
माया प्रभु की अद्भुत हो
दुनियाँ जानती उनके क्रोध को, वर-श्राप भी उनके कम न हो||
दुविधा में रहते लक्ष्मण जी है
कोई मार्ग के उनके सम्मुख हो
मृत्युदंड अब उन्हे मिलेगा, अन्यथा श्री राम श्राप के भागी हो||
मृत्युदंड है मुझको चुनना
शायद धरा छोड़ अब चलना हो
उपस्थिति बताते दुर्वासा जी की, मिलना जरूरी जिनका हो||
तर्क-वितर्ककर मिला देश निकाला
पर समाधि को स्वीकारे वो
लक्ष्मण अपने परम धाम पधारे, जहाँ भव्य स्वागत उनका हो||
विलाप में रोते श्री राम जी
ये विचित्र डरावनी घटना हो
अजेय यौद्धा कहलाते है जो, स्वयं काल से इस बार हारे वो||
विधि की लेखनी टल नहीं सकती
सीख बड़ी दे जाते वो
दशानन को मारने वाले, आज गहन सोच में डूबे हो||
भ्रात प्रेम भी बड़ा अनोखा
भाई की शक्ति कहलाता जो
एक बाजू बन साथ निभाता, असहाय दूजे को करता जो||
जीकर भी अब क्या करूँ
जब लक्ष्मण मेरे साथ न हो
कदम-कदम पर जो साथ निभाया, जग उसके बिना अब सुना हो||
सोचते सोचते दिन गुजरते
इस निर्णय पर पहुंचे वो
सरयू नदी में प्राण गँवाना, दृढ़ निश्चय मन में लाएँ वो||
विचार-विमर्श कर सभासदों से
काम का वितरण करते वो
सगे-संबंधी संग चले त्रिदश किनारे, निश्चित सरयू में उनका उतरना हो||
नारायण रूप में हुए समाहित
विष्णु रूप अवतारे जो
वैंकुंठ धाम में प्रभु पहुंचे, जो युगों-युगो से अब तक सुना हो||
स्वरचित व मौलिक रचना
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