हे परमेश्वर! (21-03-2012)
हे परमेश्वर, हे सर्वेश्वर
सुन मेरे अन्तः क्रंदन स्वर.....
नेह तेरा बस प्यास मेरी है
आँखों से नदियाँ बहती हैं
तेरा अंश तुझमे मिल जाऊं
कृपा करो ऐसी हे गिरधर.....
एहसासों के धागे चुन कर
ख़्वाबों की बुनती हूँ चादर
उस चादर में झिलमिल उभरे
नाम तेरा ही हे करुणाकर.....
जो भी दृश्य देखतीं नज़रें
तू ही हर कलरव के भीतर
तू अखंड धरती पर जीवन
तू ही प्यास बुझाता जलधर.....
तू है नेह का ऐसा सागर
जो भी भरने आये गागर
लहर लहर तुझमें मिल जाए
स्व स्वरुप पा आनन्देश्वर.....
जब भी विषय माया की आंधी
धुंध भ्रमित करती है मंजिल
तू ही है जो हाथ थाम कर
राह दिखता हे ज्ञानेश्वर.....
स्वप्न जाग्रति चेतनता में
कल आज और फिर एक कल में
तू हर क्षण में, हर क्षण तुझमें
पूर्ण अवस्थित हे सर्वेश्वर.....
श्वांस तू ही विश्वास तू ही है
निः शब्दित एहसास तू ही है
कण कण क्षण क्षण तुझे समर्पण
ज्ञानोज्जवल कर मानस अंतर.....
शब्द नहीं जो तुझको गाऊँ
तेरी महिमा को दर्शाऊँ
तू अनंत मै बस एक कण हूँ
पर तू ही हूँ हे सर्वेश्वर......
हे परमेश्वर, हे सर्वेश्वर
सुन मेरे अन्तः क्रंदन स्वर.....
Tags:
आदरणीया प्राची जी ,
शब्द नहीं जो तुझको गाऊँ
तेरी महिमा को दर्शाऊँ
तू अनंत मै बस एक कण हूँ
पर तू ही हूँ हे सर्वेश्वर.
वो अनंत जो कण कण में बसा है ,जिसकी महिमा अपरमपार है ,उसकी स्तुति पर सशक्त रचना ,बधाई
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