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प्रिय वन्दना जी, नमस्कार!
आप की प्रथम पंक्तियाँ पढ कर मुझे लगा कि ये तो मेरी अपने हृदय की स्वर लहरियाँ हैं. अभी तक मैं इस धार्मिक साहित्य की परिचर्या में समयाभाव वश सम्मिलित नहीं हो पाया था. पर आपकी पहली पंक्ति ने सब छोड़ कर आपकी कविता पढने के लिए वरवस खींच सा लिया. यद्यपि शेष पंक्तियों में उस अभिनव आध्यात्मिक आकर्षण को उतना बढ़ावा नहीं मिला पाया पर ...आपकी आत्मा उनके इर्द गिर्द ही है.. और जब उनका भाव भी आ जाए, कृपा होजाए तो क्षण भर में राधा व कृष्ण एक हो जाते हैं... इस भाव में सहयोग देने के लिए यथा शीघ्र शायद में भी कुछ लिख बैठूँ..तब तक आप मेरी कुछ कविताओं की पैंग( झूले के झोटे में) में और भी झूल सकतीं हैं ..और शायद उन्हें और निकट से देख पायें.. कुछ इस स्तंभ पर भी पोस्ट करूँगा..
जो आप लिख रहीं हैं उसे भी बढ़ातीं चलें..
शुभ कामनाओं सहित उन्हीं को समर्पित
गोपाल बघेल 'मधु'
टोरोंटो, ओंटारियो, कनाडा
आध्यात्मिक प्रवंध पीठ
अखिल विश्व हिंदी समिति
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