दोहा
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मुरली धर मुरली बजा , गोकुल होत अधीर।
राधा रानी चल पड़ीं , पहुँचत यमुना तीर । ।
भौरे फुस फुस कर रहे , फूलों डारे कान ।
राधा रानी आ रही , सुन मुरली की तान । ।
वंशी तट वंशी बजी , वंशी धर गंभीर ।
वंशी सुर अब वो नही , हृदय उठत न पीर । ।
कालिंदी कारी भयी , खाली देख मचान।
राधा रानी नाचती , किशना देते तान । ।
सखिन संग राधा चली , धर नयनन में आस ।
चाँद बदरा जाय छिपे , जी भर खेलूँ रास । ।
चले सुदामा मिलन को , बाँधे पुटरी साथ ।
प्रेम मगन सर्वस्व दियो , सखा धरम धर माथ । ।
मौलिक / अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
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