भजन .....
बरसो रे घनश्याम
तुम चाहो तो अपने आँसू करूं तुम्हारे नाम
बरसो रे घनश्याम......
मन उपवन में अभिलाषा की सूख गयी है क्यारी
जित देखूं मैं उत आशा की टूट गयी है डाली
दरशन दो बिन दरशन मेरो जीवन है निष्काम
बरसो रे घनश्याम.......
पंथ निहारे और निहारे गोपी गोप संग ग्वाले
नंदन वन के बंसी बजैया गोकुल के उजियाले
कब तक और करोगे जाकर मथुरा में विश्राम
बरसो रे घनश्याम......
चंचल यमुना की लहरों का उतरा गहरा पानी
अब के बरस तुमने लहरों की पीर नहीं पहचानी
अँधियारे में नव जीवन को तरसे सारा गाम
बरसो रे घनश्याम.......
....आभा
अप्रकाशित एवं मौलिक
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सुंदर भावपूर्ण भजन |
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