शक्ति के रूप (मौलिक एवं अप्रकाशित )
हिमालय की लाली मां, हैं बैल पर सवार |
दिव्य रूप हाथ त्रिशूल, सुशोभित पद्म सार ||
सत्व सत्ता प्रकृति रूप, शिखरों पर हैं धाम |
सती यज्ञ से दुर्गा का, ‘ शैलपुत्री ’ है नाम
एक हाथ में जप माला, दूजे कमण्डल नीर |
तपाचार की ज्योति में, बोध ज्ञान के हीर ||
तपस्विनी ‘ब्रह्मचारणी ’, बीते वर्ष हजार |
शिव शक्ति बनने उसने, ना मानी थी हार ||
अर्ध चंद्रमा मस्तक पर, सोने का है रंग |
सिंह पर सवार देवी, अस्त्र–शस्त्र हैं संग ||
दिव्य प्रकाश भर देती, ध्वनि कितनी अपार |
‘ चंद्रघंटा ’ की शक्ति से, पाप गया है हार ||
अष्ट-भुज आदि-शक्ति मां, देती यश बल आयु |
आधि-व्याधि दूर हटाए, प्रवाहित प्राण वायु ||
सूर्य मंडल सी आभा, फैला तेज प्रकाश |
‘ कूष्मांडा ’ के विभव से, अंधकार का नाश ||
महादेव की वामनी, स्कंद विराजे गोद |
जगत जननी गौरी माँ, लुटा रहीं हैं मोद ||
‘ स्कंदमाता ’ की वरमुद्रा, पुष्कल जीवन सार |
विशुद्ध चक्र में मन हो, खुलते मोक्ष द्वार ||
वर-मुद्रा अभय-मुद्रा है, कर खड्ग कमल सार |
माँ शुंभनिशुंभहननी, दुष्ट रहे हैं हार ||
कात्यायनी रूप देख, मन सब का सुख पाय |
अर्थ धर्म काम मोक्ष, ध्यान धरो आ जाय ||
अंधकार सा घना है, काली रूप विकराल |
गर्दभ पर सवार शक्ति, हैं भक्त पर निहाल ||
‘ कालरात्रि ’ के नाम से, असुर भागते दूर |
त्रिनेत्रों में समाए हैं, असंख्य चमकते सूर ||
सितवर्ण श्वेत परिधान, डमरू बजे अपार |
सुहाग रक्षक वरदानी, माँ वृषभ पर सवार ||
अष्टमी को ‘ महागौरी, ’ देतीं हैं वरदान |
लाल चुनरिया चढ़ रही, गूंजे मंगल गान ||
भक्ति से शिव ने पाया, अर्ध नार का रूप |
कमल पुष्प आसीन हैं, देवी अनंत स्वरूप |
‘ सिद्धिदात्री ’ की पूजा, नवरात्रों का सार |
मधुर स्वरों से मोहित, सारा जग संसार ||
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बहुत सुंदर सृजन | साधुवाद आदरणीय
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