अभय कान्त झा दीपराज कृत -
सरस्वती वंदना - १
वरदान दो माँ शारदे, हमें बुद्धि का वरदान दो |
आदर्श हो जीवन हमारा, शारदे वो ज्ञान दो ||
माँ कृपा की आपने, हमको मनुज जीवन दिया |
धर्म, संस्कृति और शुभ-संस्कार पूरित मन दिया ||
कर्म से कर्तव्य के निर्वाह की हमें आन दो |
आदर्श हो जीवन हमारा, शारदे वो ज्ञान दो || १ ||
इस मनुज तन में मनुजता का हमेशा वास हो |
न्याय के पथ के पथिक हम हों, यही अभिलाष हो ||
रूप दो अनुपम- मनोरम और गुणों की खान दो |
वरदान दो माँ शारदे, हमें बुद्धि का वरदान दो || २ ||
संत सा मन और साधक के जतन की शक्ति दो |
आपके आशीष की छाया - कृपा और भक्ति दो ||
आप की संतान हम कहलायें, वो पहचान दो |
आदर्श हो जीवन हमारा, शारदे वो ज्ञान दो || ३ ||
दूर हो अज्ञान का तम, ज्ञान की दो रौशनी |
सत्य के और धर्म के पथ पर रहे माँ, चांदनी ||
काल भी जिसको मिटा न पाय ऐसा मान दो |
वरदान दो माँ, शारदे, हमें बुद्धि का वरदान दो || ४ ||
विश्व को आनंद का उपहार देने की लगन |
सब को अपनी गोद में हम, ले सकें जैसे गगन ||
सबके चेहरे को खुशी जो दे सके वह तान दो |
आदर्श हो जीवन हमारा, शारदे वो ज्ञान दो ||५||
वरदान दो माँ शारदे, हमें बुद्धि का वरदान दो |
आदर्श हो जीवन हमारा, शारदे वो ज्ञान दो ||
रचनाकार - अभय दीपराज
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