आदरणीय काव्य-रसिको,
सादर अभिवादन !
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह आयोजन लगातार क्रम में इस बार एक सौ नवाँ आयोजन है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
16 मई 2020 दिन शनिवार से 17 मई 2020 दिन रविवार तक
 
इस बार के छंद हैं - 
कुण्डलिया छंद और सार छंद
हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
कुण्डलिया छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
सार छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 16 मई 2020 दिन शनिवार से 17 मई 2020 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय अशोक भाईजी,
अपनी सहज भावना को दो छंदों पर एक कुण्डलिया में बहुत ही सुंदर और सलीके से व्यक्त किया है। साथ ही अंतिम पँक्ति में जो एक भूल हुई है उसे भी याद दिलाकर सक्रिय और गुणी पाठक का कर्तव्य निभाया है।
उत्साहवर्धन और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार॥
अनुरोध ... द्वितीय छंद की अंतिम पँक्ति को इस तरह पढ़िए दुल्हन होगी साथ, रस्म हो जल्दी जितनी॥
सभी पाठकों से अनुरोध ... द्वितीय छंद की अंतिम पँक्ति को इस तरह पढ़िए
दुल्हन होगी साथ, रस्म हो जल्दी जितनी॥
आ. भाई अखिलेश जी, प्ररदत्त चित्रानुरूप उम्दा कुंडलियाँ हुई हैं । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय लक्ष्मणभाई
हृदय से धन्यवाद आभार।
आदरणीय अखिलेश जी, सुन्दर सृजन!
आदरणीय सतविन्द्र भाई
हृदय से धन्यवाद आभार।
सार छंद
गुपचुप-गुपचुप होती शादी, बिन घोड़ी बाराती ।
कोरोना है, मुश्किल आना, मिलने पर भी पाती ।।
मन्त्र पढ़ रहे मोबाइल पर, पण्डित लोटा वाले ।
भूख बड़ी है, दान बिना क्या, करते बैठे ठाले ।।
काल शुभाशुभ चूक न जाए, मन में था भय व्यापा ।
इसीलिए दूल्हे राजा ने, पैदल रास्ता नापा ।।
पाँच साथ थे पाँच घराती, हुई अनोखी शादी ।
घर से ही आशीष दे रहे, सारे दादा-दादी ।।
समय विदाई का जब आया, सजनी छुपकर बोली ।
साथ हमारे बैठो सजना, चढ़ आओ तुम डोली ।।
नहीं मिलेगा कोई वाहन, सड़कें हैं सब सूनी ।
बात मान लो मेरी वरना, बैठ रमाओ धूनी ।।
चले जा रहे डोली में लो, देखो दूल्हे राजा ।
दौड़ लगाते हैं कहार बस, नहीं साथ है बाजा ।।
नीलगगन से सूरज दद्दा, कहते बाँधों बस्ता ।
वरना झेलो ताप भयंकर, हालत होगी खस्ता ।।
ग्रीष्मकाल है बैठो घर में, कहते सभी सयाने ।
कोरोना है पसरा बाहर, बनो नहीं दीवाने ।।
आज नहीं तो कल हो जाती, शादी तो है होना ।
चूक हुई तो कहीं पड़े ना, तुमको देखो रोना ।।
~ मौलिक/अप्रकाशित.
आदरणीय अशोक भाईजी,
सार छंद में सारी बातें, हृदय खोल कह डाली।
कोरोना के कारण अब तो, सबकी है बदहाली॥
सब सामाजिक धार्मिक उत्सव, लगता खाली खाली।
रंगहीन यह शहर लगे जब, पहुँच न पाई साली॥
बीस पँक्तियों की हृदय से बधाई
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रस्तुत सार छंदों को छंद के माध्यम से सराहने और उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार. सादर
सुन्दर चित्रानुरूप छन्द रचना के लिए सादर बधाई आदरणीय
प्रस्तुत छंदों को सराहने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय भाई सतविन्द्र कुमार राणा जी. सादर
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