आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ इक्कीसवाँ आयोजन है.
इस बार का छंद है - गीतिका छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
22 मई 2021 दिन शनिवार से 23 मई 2021 दिन रविवार तक
हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
गीतिका छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
चित्र अंतर्जाल से
जैसा कि विदित है, कईएक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो
22 मई 2021 दिन शनिवार से 23 मई 2021 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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Replies are closed for this discussion.
आ. भाई गंगाधर जी, चित्र को परिभाषित करती सुन्दर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।
एक सूखा कौर खाकर नित गरीबी में जिये।
पर न खोया बालपन को छोड़ आये हाशिये।।
तात का रिक्सा सिंहासन वो बनाकर हँस दिये।
खोजना सुख काम इनका ये समय के गड़रिये।।
***
है हसी मुख पर समेटे खूब दो भाई बहन।
चाहते क्या बोलना मन में करो इसका मनन।*।
हो गरीबी रोग संकट मत करो दुख को वहन।
है जलाती सुख सभी सिर्फ चिन्ता की अगन।।
***
भाव मन में है नहीं भय का तनिक भी देखिए।
क्या करोना रोग है इन को न मतलब जानिए।।
कह रहे जैसे तजो दुख मत खुशी को रोकिए।
सत्य क्या इससे इतर है आप मन में सोचिए।।
***
कह रहे कुर्सी मिली है राज अपना हो गया।
अब करेंगे देश हित में काम हम भी इक नया।।
सिर्फ सेवा भाव होगा साथ मन में बस दया।
हो सुरक्षित जी सके यह देश जीवन निर्भया।।
***
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
चित्र आधारित गीतिका छ॔द :
राजा-रानी हो गये हैं बैठ वो रिक्शा अहा !
हँस रहे उन्मुक्त होकर बचपना है वो अहा !!
हास में आनन्द उनके मस्त दिखते चेहरे !
पा गये अत्यंत खुशियाँ दिख रही जो चेहरे !!
मुस्कराते रात-दिन हँसते सदा बचपन रहे !
फिक्र भी होती नहीं बचपन नशे में हम रहे !!
फाँदते ग॔गा किनारे कबड्डी हम खेलते !
खूब खाते खीर-पूरी द॔ड हम तो पेलते !!
शाम मैदानों कभी वर्षा सुबह बचपन अहा !
हम घरौंदे थे बनाते रेत पर बचपन अहा !!
लाज आती थी नहीं जब खोल दिल हँसते रहे !
सामने खतरों कभी लड़ते मजा करते रहे !!
सावनों बरसात में हम दौड़ते होते सड़क !
खेलते खोखो नगर बचपन रहे हम बेधड़क !!
नाव कागज की हमारी तैरती नालों सदा!
हम नहाते नाचते नंगे बदन गंगा सदा !!
थक गयी परवाज जब जा हम चढ़े पेड़ों अहा !
खूब खाते आम यारो तोड़ बागों में अहा !!
जब पकड़ता बागवाँ फिर पीटता वो थोक में !
दौड़ते हम भी बहुत पर मारता माली हमें !!
हम सिकन्दर गाँव के लाठी हमारे हाथ में !
थी शरारत यार जिगरी दोस्ती भारी हमें !!
क्या ठिकाना था खुशी का खूब दौलत जो रही !
फूल सा बचपन गया जाती हमारी लय रही !!
मौलिक एवम् अप्रकाशित
अत्यंत हृदयविदारक सूचना के कारण इस आयोजन को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जाता है ..
सादर
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