चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक -१२
(सभी प्रतिक्रिया रचनाएँ एक साथ)
अम्बरीष श्रीवास्तव
कुंडलिया में मित्रवर, अंतिम से प्रारंभ.
करें समापन दीर्घ से, गुरुता हरती दंभ..
गुरुता हरती दंभ, सरलता मन को भाये.
तुक से मेल-मिलाप, छंद निर्मल कर जाये.
‘अम्बरीष’ दें ध्यान, चित्त यह होता छलिया.
बहुत बधाई मित्र, रची सुन्दर कुंडलिया..
साधारण जो भी कहा, दिया आपने मान.
जय हो जय हो आपकी, धन्यवाद श्रीमान ..
ओ बी ओ का मंच यह , यहाँ मिलेगा प्यार |
स्वागत है 'मृदु' आपका, दिल से है आभार | |
मिलकर समझें हम सभी, छंदों का भूगोल.
प्रतिभाशाली आप हैं, छंद रचें अनमोल..
आपस में हैं सीखते, हम साहित्यिक पाठ.
ओ बी ओ पर है नहीं, सोलह दूने आठ..
स्वागत आदरणीय का, नमस्कार हे प्रात.
आभारी मैं आपका, जय हो जय हो भ्रात.
बेहतर दोहा है बना, भाई दोहाकार..
रघुविंदर जी आपका, दिल से है आभार ..
आयी कैसी आपदा, छूट गयी थी आस.
मेरा बेटा था फँसा, टूट रही थी सांस.
टूट रही थी सांस, तभी नवजीवन पाया.
धीर वीर गंभीर, फ़ौज ने उसे बचाया.
अम्बरीष जो सौंप, दिया तो राहत पायी.
दूंगा दोनों पुत्र, देश की सेना आयी..
ओ बी ओ पर आ गए, यही आपका गेह.
स्वागत संजय आपका, स्वीकारें स्नेह..
सुन्दर दोहे हैं रचे, परिभाषित है चित्र.
बहुत बधाई आपको, मेरे प्यारे मित्र..
सेना का बल देखिये, अपनी सेना खास.
कुंडलिया सुन्दर बनी, बेहतर प्रथम प्रयास..
गीतिका हम सब को भायी, आपका अनुपम सृजन,
वीरता को है समर्पित, देखिये यह मन व धन.
आपको दिल से बधाई, दे रहा पुलकित ये मन.
खूब रचिए छंद ऐसे, ओ बि ओ अपना चमन ..
शशिभूषण जी आज आपने, सैनिक-महिमा अनुपम गाई!
परिभाषित भी चित्र हुआ है, वीरों की है धरती माई!
करूँ नमन साहस को इनके, दुश्मन है अब पानी-पानी!
बहुत बधाई तुमको भाई, इन वीरों की अमर कहानी!!
सुन्दर दोहे आपके, सारे हैं अनमोल.
चित्रण करते चित्र का, स्नेहयुक्त रस घोल..
उच्चारण से जानिये, ना हो मात्रा दोष
लघु-गुरु गणना बाद में, छंद रहे निर्दोष..
कुंडलिया बेहतर बनी, परिभाषित है चित्र.
भाव शिल्प में हैं सधे, बहुत बधाई मित्र ..
कुंडलिया के बिम्ब हैं, अति उत्तम हे मित्र.
भाव, शिल्प सब हैं सधे, परिभाषित है चित्र.
परिभाषित है चित्र. मित्रवर बहुत बधाई.
स्वीकारो स्नेह, फलो-फूलो तुम भाई.
अम्बरीष हैं धन्य, पवनसुत, कान्हा-छलिया.
करके उनको याद , रची सुन्दर कुंडलिया ..
बाहैं हमरी फरिकै लागीं, हमैं जोश तुम दिहेउ देवाय |
आल्हा जइसन कुछ कुछ भाइनि , बांचेन ताव गवा है आय |
बाँधउ पन्द्रह सोलह मात्रा , हरषित हुइहैं सौरभ भाय |
सगरे सैनिक गोद उठइहैं, उनके आपन दिहेन बताय ||
आखिर अइसा का है हुइगा, अंतिम पंक्ति रही भरमाय
कैसन डाउट तुमका भाइनि, खुलिकै हमका देउ बताय |
अनुज 'मृदु' मिला है मालिनी का सहारा.
बहुत खुश हुआ मैं देख सारा नज़ारा..
कुंडलिया का शिल्प है, पर्फेक्टम् बेजोड़.
वाह-वाह यदि की नहीं, नल्ला देंगें तोड़..
थोड़ी सी मेहनत करें, ध्यान लगायें तेज.
आगे बढते जाइए , साथ बढ़ेंगे पेज..
कुंडलिया दोनों भली, परिभाषित है चित्र.
कथ्य शिल्प अनमोल हैं, बहुत बधाई मित्र..
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श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी
कुंडलिया की चारुता,मन को करती मुग्ध।
कथ्य शिल्प अरु भाव,जब हो रचा विशुद्ध॥
जब हो रचा विशुद्ध,आपकी बातें सच्ची।
कथ्य भाव कै मीत,शिल्प में माथापच्ची॥
वाह!भ्रात क्या बात,चित्त बहुतै है छलिया।
प्रतिभा और प्रयास,छन्द साधै कुंडलिया॥
हटा सकें तो लें हटा, ’जी के’ का उद्बोध
दोहा विधानुसार हो, सादर है अनुरोध.
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श्री अरुण कुमार निगम
कुंडलिया के छंद से , हुई मधुर शुरुवात
निश्चय होगी छंद की, अब मोहक बरसात
अब मोहक बरसात, मेह छाये अविनाशी
मन करता है आज सुनाऊँ भीम पलासी
कुंडलिया के छंद से , हुई मधुर शुरुवात
निश्चय होगी छंद की, अब मोहक बरसात
अब मोहक बरसात, मेह छाये अविनाशी
पावन होगा हृदय , बनेगा मथुरा - काशी
दिल्ली यू पी दुर्ग ,नागपुर पटना बलिया
चहुँदिक् दे आनंद , बागड़े जी कुंडलिया.
साया सुखद सनेह का सदा रहे सिरमौर
सौरभ पाये जो भ्रमर वह चाहे क्या और
वह चाहे क्या और प्रेम की बगिया महके
हरपल हो मधुमास हृदय कोयलिया चहके
रही विवशता विगत दिनों मैं मिल ना पाया
रहा किंतु सिरमौर स्नेह का सुरभित साया..
वाह, वाह राकेश जी , दोहे कितने खूब
मरुथल जैसी भूमि पर, ज्यों उग आई दूब.
शब्द भाव बेजोड़ लगे , पढ़ पाया आनंद
बतलायें हे भ्रात मम, इस रचना का छंद.
ओबीओ पर हम सभी, सीख रहे हैं मीत
आकर जाना हैं यहाँ , रिश्ते बड़े पुनीत.
रिश्ते बड़े पुनीत , निखरता कच्चा सोना
होता है साकार, सभी का सपन सलोना
अंतरघट की प्यास बुझे रस छककर पीओ
हरदम हो आबाद ,ज्ञान-मंदिर ओबीओ..
सूक्ष्म दृष्टि है आपकी , मान गये उस्ताद
सचमुच कम पड़ जाय है, दूँ जितनी भी दाद
दूँ जितनी भी दाद , चित्र का चप्पा चप्पा
बढ़े हाथ बस देख , ढूँढ डाला है बप्पा
चित्र काव्य की भूमि , दोहे छंदों की वृष्टि
मान गये उस्ताद , आपकी सूक्ष्म है दृष्टि.
रोला बहका आखरी , हुई गलत शुरुवात
"सूक्ष्म दृष्टि" के फेर में ,भूल हो गई तात
भूल हो गई तात , बचेंगे दुर्घटना से
नाच नाच से नहीं , चलेंगे चना चना से
गुरु का छौंका लगे ,अंत माने मन भोला
हुई गलत शुरुवात ,आखरी बहका रोला.
कुंडलिया की चल पड़ी, टॉप गियर पर कार
चालक खुश हो गा रहा ,खुश हैं सभी सवार
खुश हैं सभी सवार , नाम गुरु दोहा रोला
करे हवा से बात , कार या उडनखटोला
कहे अरुण कविराय ,चैन की बजी मुरलिया
कहाँ ठहरती देख , हमारी कार कुँडलिया
ओबीओ दरबार में , मिले ज्ञान के मंत्र
चाहत गर मन में रही, सुधरें सारे तंत्र.
हेराफेरी में मिले, एक अलग आनंद
लेकिन भैया छंद ही, देता परमानंद.
रघुविंद्र यादव जी के , दोहों का यह रंग
सीना फूले गर्व से , फड़के सारे अंग.
समझ सका ना क्यों गलत, जी के का उद्बोध
क्या विधान समझाइये , सादर है अनुरोध.
पहली कुंडलिया मगर , इतनी है दमदार
अरुण बधाई अरुण की, कर लीजे स्वीकार
कर लीजे स्वीकार, छंद बस गढ़ते जायें
ओबीओ के मंच , हमेशा पढ़ते जायें
सौरभ जी की बात , हमें भी लगी रुपहली
सचमुच में दमदार, लगी कुंडलिया पहली.
कुंडलिया सुंदर बनी, चित्र हुआ साकार
कसे साज से आ रही, मधुर मधुर झंकार.
भाई सुंदर आपने, चुन चुन लिये प्रतीक
लगा हमें संदेश यह ,सोलह आने ठीक
लिखता कुण्डलिया मगर , आड़े समयाभाव
तुमने पूरा कर दिया , देकर सुंदर भाव
देकर सुंदर भाव , प्रमाणित कर दी क्षमता
बहता पानी जहाँ , वहीं तो जोगी रमता
पाँव पूत का भाई , पालने में ही दिखता
प्रात: समयाभाव, अगर कुंडलिया लिखता
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श्री सौरभ पाण्डेय
सादर स्वागत आपका, हर्षित हूँ श्रीमान
बानगियाँ ऐसी यहाँ, आयोजन की जान
कुण्डलिया क्या आपकी, बिम्बित हो तस्वीर
सेना के नायक दिखें, धीर वीर गंभीर
धीर वीर गंभीर, अरुणजी रचना करते
बढिया करें प्रयास, शब्द औ’ भाव सुधरते
शिल्प, भाव औ कथ्य, गढ़ें अद्भुत सी दुनिया
कहूँ बधाई तात, ग़ज़ब की है कुण्डलिया ..
धन्य किया, हे मित्रवर, कह कर सारी बात
दैनिक जिम्मेवारियाँ, नहीं विवशता तात ..
अम्बर ही से सीखते, छंद पढ़ें जज़्बात
हृदय-भाव सम्प्रेष्य हैं, निर्देशन हो तात !!
सोलह दूने आठ, ग़ज़ब का किया इशारा
मित्र कहूँ आभार, यहाँ का मौसम प्यारा
भाई, ये आलस कहें, या दौरे बेरोक
कुछ तो रच पाये नहीं, दाद पुराये शौक .
सुन्दर छंद प्रयास है, झूम उठा मनमोर
धीरज धारे डालिये, शब्द गणन पर जोर
मुग्ध हुए हम जान कर, छंदों में हैं लीन
गिनलें दो क्या को यहाँ, वहीं क्लेष है तीन
छंद रचा है आपने, मुखरित होता चित्र
’क्या आशय’ उभरा मुखर, उन्नत कोशिश मित्र
इतना समझ सका अरुण, हुए आप हैं मस्त
परन्तु कुण्डलिया विधा, हुई तनिक है त्रस्त
हुई तनिक है त्रस्त, कि अंतिम रोला बहका
सम चरण रोले का, सुझाये गुरु का छौंका
सावधान ही रहें, अन्यथा हो दुर्घटना
जो कुछ देखा कहा, भाव स्वीकारें इतना
काश यही हो सत्य, उजबक हमभी बारहा
औंधे छितरा कृत्य, शिल्प छलावा जो हुआ..
शिल्प कथ्य या हो विधा, छंद दिखे हैं पूर्ण
पद्य प्रयास है साधना, कुंदन होता स्वर्ण .. .
प्रथम चरण में कह गये, ’यादव जी के’ रूढ़
’बेसिक’ में प्रभु जाइये, क्यों किंकर्तव्यविमूढ़ ??
सुन्दर लगा प्रयास यह, हुआ हृदय अभिभूत
सही कहूँ, सच हो रहा, मसल ’पालना-पूत’
गीतिका निर्दोष है यह, भाव से है यह भरी
शब्द गणना मुग्ध करती, चित्र बाँधे है खरी..
दोहे तो उम्दा हुए, मूल चित्र नेपथ्य
मात्रा की गणना करें, हल्का करें न कृत्य
सुगढ़ हुई कोशिश अभी, संयत है अब रंग
मिलजुल कर हम साधते, छंद पाठ के ढंग
दोहा मांगे आपसे, थोड़ा और प्रयास
लगन लगी दिलबाग़ की, महती हो विश्वास.
मान अरुण को आपसे, हुए तात हम मुग्ध
पद्य भाव सुन्दर हुआ , परिभाषा भी शुद्ध
साथ-साथ सब सीखते, साथ-साथ संज्ञान
साथ-साथ सँवरे सभी, साथ-साथ सम्मान ..
पहिले बाँचा मयंक क जइसा, पुनि यहि साधे शिल्प बताय
वाह भाय जी वाह हुआ पर, पंक्ति अंतिम रही भरमाय ..
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श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह ‘मृदु’
छन्द विधा का ज्ञान पा,आज हुआ मै धन्य .
ऐसे ही मिलता रहे , नूतन प्रेम अनन्य ..
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ज्ञान बढाया आपने, नमन करें स्वीकार.
रचना को है बल मिला, सपना भी साकार.
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रक्षा में होती सदा, हैं मात्राएँ चार.
इसीलिए लय भंग है, मेरा यही विचार.
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बात अगर यह सही है,गुरुजन दें समझाय.
सौरभ सर का साथ यह, मन को बहुत रिझाय.
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डॉ० ब्रजेश त्रिपाठी
सुन्दरतम यह कुंडली,सुन्दर इसके भाव
धन्यवाद अविनाश जी बढ़ता जाये चाव
बढ़ता जाये चाव चित्र को न्याय दिलाती
सेना का स्वभाव-चरित्र और कृति दर्शाती
जन-जन की प्रिय भारत की सेना है अनुपम
शौर्य,प्रबल साहसिक कार्य इसके सुन्दरतम
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श्रीमती नीलम उपाध्याय
यहाँ का मौसम प्यारा कुंडलियों पर कुण्डलियाँ
एक बढ़कर एक जैसे बंगला बने न्यारा
देश के दीवाने उनके लिये हमारे नयन हैं भरे
हम करें सलाम उन्हें जो हमें महफूज करें ।
जियो भारत की सेना
तुम देश की शान
तुमसे ही है बढ़ता
देश का अभिमान ।
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श्री राकेश कुमार त्रिपाठी ‘बस्तीवी’
माननीय अरुण जी, सादर नमस्कार.
दोहों की भाषा जची, बहुत बहुत आभार.
पहले से डर मन बसा, हुआ व्याकरण फेल,
गिनती मे फिसला कई, ना बना तालमेल.
जै जवान जै किसान गूंजे सारा आसमान,
हिंद के प्रताप को बढ़ाये चलो भारती.
चीर के वो नीर या कि विपति भूकंप की भी,
अंक में तो बाल को लगाए चलो भारती.
दृश्य देश-माथ का या हमला हो मुंबई पे,
सेवा त्याग वीरता दिखाए चलो भारती.
देह गले अंग जले बम या बारूद फटे ,
दुश्मन को रौंद के मिटाये चलो भारती.
गोद बलवान ने बचाया प्राण आपदा मे
टोपी लाल लाल की लगाये चलो भारती.
हिंद के गुमान का है बदन चट्टान सम,
मान वीर रस का निभाये चलो भारती.
वीरता के मान दंड आएँ कुछ हम में भी,
निबलों को बाँह मे उठाये चलो भारती.
धर्म कई वेश कई चाँद तारे फूल लागे,
भारती के चोले को सजाये चलो भारती.
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श्री संजय मिश्र ‘हबीब’
सुन्दर मोहक रीत यह, गमके गंध बसंत
ओ बी ओ में होत है, शंकाओं का अंत||
सूक्ष्म दर्शी यंत्र सम, रखते अम्बर आँख
संग उनके सब उड़ चलें, भावों की ले पांख
सुन्दर कुण्डलिया रचें, अरुण सरजी आप
अरुणोदय ज्यों हो रहा, गुनगुन भाये ताप
सत्य सत्य अरु सत्य ही, आप कहें श्रीमान
छंदानन्द जो न चखा, जीवन में ना प्राण ||
अद्भुत करे कमाल', आपके दोहे भइया
पढ़ कर हुआ निहाल, निरुत्तर हो कर बैठा
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श्रीमती सीमा अग्रवाल
जीवन फौजी का सदा .ज्यूँ अनुशासन बद्ध
वैसे ही कविता बने छंदों से संमृद्ध
गिन गिन कर उँगली थकी ,फिर भी गणना फेल
ग्यारह का बारह बना,बिगड़ गया सब खेल
भावभरी रचना मिली ,अरुण आपकी खूब l
कथ्य -शिल्प उत्तम बने,निखरा-निखरा रूप ll
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श्री आनंद प्रवीन
हूँ थोड़ा नादाँ ज़रा अनजान........कला हूँ सीख रहा...
कोशिश बड़ी - बड़ी करता हूँ.............इसी लिए तो लिख रहा......
हिंद सुनावे जो व्यथा, सर पर धड़े उठाए,
ऐसे तन-मन धाड़ ही, फौजी सदा कहाय II
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श्री रघुविन्द्र यादव
उम्दा दोहे आपके, पढ़ आया आनंद
रच डाले हैं आपने, सुंदर-सुंदर छंद
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श्री अरुण श्रीवास्तव
नेह बनाए राखिए , अभिनन्दन सर नाय
शुभचिंतक हो आपसा , कठिन राह कट जाय
कठिन राह है काव्य की , दुर्बल मन घबराय
धन्यवाद है आपका , चलना दिए बताय
जो कुछ है सब आपसे , सीखा आदरणीय
ओ बी ओ के मंच की , बातें अनुकरणीय
सोलह आने ठीक , आप बातें करते है
और यही सत्संग , हमारा भय हरते है
बना रहे आशीष , अभी है बहुत चढ़ाई
करें नमन करबद्ध , आपका छोटा भाई
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श्री मनोज कुमार सिंह ‘मयंक’
किसने किस पर क्या कहा?मुझको देहु बताय|
जब भी खोलू पृष्ठ को,कुछ ना कुछ छुप जाय||
कौन पृष्ठ खोलूं यहाँ,आलोचना निमित्त|
नया हूँ मैं श्रीमान जी,कहिये सकल चरित्र|
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श्री दुष्यंत सेवक
अरिदलन से अरिमर्दन, दोष हुआ है दूर
ओ बी ओ पर सीख लो, अवसर हैं भरपूर
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माननीय अम्बरीष जी, सादर नमस्कार. आपके इस श्रम साध्य प्रयत्न के लिए बहुत बहुत बधाई. जिस प्रकार आपने पूरी प्रतियोगिता के दौरान एक एक रचना को सुधरवाया है, वह काबिले तारीफ है. और जो माहौल रहता है प्रतियोगिता एवं अन्य आयोजनों के वक्त वह भी यादगार रहता है. अच्छा मेरा निम्न घनाक्षरी (प्रयत्न) यहाँ सम्मिलित नहीं किया गया, अगर इसकी गुणवत्ता नजर अंदाज कर सके, तो कृपया इसे भी यहाँ स्थान दे, धन्यवाद. आपका दिन मंगलमय हो.
जै जवान जै किसान गूंजे सारा आसमान,
हिंद के प्रताप को बढ़ाये चलो भारती.
चीर के वो नीर या कि विपति भूकंप की भी,
अंक में तो बाल को लगाए चलो भारती.
दृश्य देश-माथ का या हमला हो मुंबई पे,
सेवा त्याग वीरता दिखाए चलो भारती.
देह गले अंग जले बम या बारूद फटे ,
दुश्मन को रौंद के मिटाये चलो भारती.
गोद बलवान ने बचाया प्राण आपदा मे
टोपी लाल लाल की लगाये चलो भारती.
हिंद के गुमान का है बदन चट्टान सम,
मान वीर रस का निभाये चलो भारती.
वीरता के मान दंड आएँ कुछ हम में भी,
निबलों को बाँह मे उठाये चलो भारती.
धर्म कई वेश कई चाँद तारे फूल लागे,
भारती के चोले को सजाये चलो भारती.
नमस्कार भाई राकेश जी ! आपको भी यह दिवस मंगलमय हो ! संभवतः पेज जंप होने से कुछ प्रतिक्रिया रचनाएँ उपलब्ध नहीं थीं .... अतः उन्हें सम्मिलित कर पाना संभव नहीं हो सका .....आपकी इच्छानुसार आपकी प्रतिक्रिया रचनाएँ सम्मिलित की जा रही हैं |
जी बहुत बहुत धन्यवाद.
स्वागत है मित्र !
इस श्रमसाध्य कार्य के लिये सादर धन्यवाद, आदरणीय अम्बरीषभाईजी.
प्रतिक्रिया या टिप्पणियों में रचनाएँ सद्यः या आशु होती हैं. यह ओबीओ के आयोजनों का आईना हैं. जिस मंच पर भाव शब्द का जामा पहन निश्चित विधान में सरलता से ढलने लगें तो समझा जाना चाहिये कि मंच का स्तर कहाँ है. इसके सदस्यों का प्रयास कितना गहन है या इस मंच से उनका जुड़ाव कितना है. दूसरे, टिप्पणी के तौर पर आयी रचनाएँ मंच की अमूल्य निधियाँ हैं क्योंकि कुछ को छोड़ दिया जाय तो इनमें अधिकतर प्रयुक्त छंद के शिल्प पालन करती दीख रही हैं.
आपका एक-एक रचना को चुन निकालना आपके उत्तरदायित्व की समझ को दिखाता है.
सादर
धन्यवाद नीरज जी !
आदरणीय सौरभ जी ! आपका हार्दिक आभार मित्रवर ! आपने बिलकुल सत्य कहा ओ बी ओ की प्रतिक्रिया रचनाओं की बात ही अलग है ! जय ओ बी ओ !
प्रतियोगिता को छ्न्द आधारित करने का निर्णय अब गुल खिला रहा है
आशा है कि जल्द ही इन गुलों की खुशबू से इंटरनेट का एक बड़ा हिस्सा महक उठेगा
आमीन
इस बाग के बागबानों को बधाई
स्वागत है भाई वीनस जी ! जय ओ बी ओ !
आवश्यक सूचना:-
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