सीखना और सिखाना दोनों दो तरह के शब्द हैं और उनके प्रभाव विन्दु भी अलग-अलग हैं. आपकी पंक्ति है - हिन्दी को भी सिखना है
अब बताइये, यहाँ यह शब्द सिखना है तो गलत है. सिखाना होना चाहिए. लेकिन सिखाना से तुक नहीं निभने वाली. न उस पंक्ति के पहले चरण से इस चरण का भाव मेल खाता है.
छंदोत्सव के सफल आयोजन व् संकलन के लिए आपको हार्दिक बधाई व् आभार ,,आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ...सादर
आदरणीया प्रतिभाजी, सादर आभार
आद० सौरभ जी, छ्न्दोत्सव के इस संकलन के लिए आपको बहुत- बहुत बधाई | इस बार नेट ने बहुत मायूस किया जिनकी रचनाएँ पढ़ नहीं पाई थी अब पढ़ी हैं सभी ने बहुत अच्छी लिखी हैं सबको बधाई मैं अपनी रचना पर सबकी प्रतिक्रिया का भी आभार प्रकट नहीं कर पाई | अतः इस पोस्ट के माध्यम से उन सभी रचनाकारों का हार्दिक आभार जिन्होंने प्रस्तुति को पढ़ा और सराहा |
संकलित रचनाओं पर आपकी उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी.
आदरणीय श्री सौरभ पांडेय जी, सादर नमन! ओ बी ओ चित्र से काव्य छंदोत्सव - 65 के सफल आयोजन एवं त्वरित संकलन प्रस्तुति के लिए सादर आभार एवं बधाई।
आदरणीय श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी द्वारा बताई हुई त्रुटियों को दुरुस्त करने की कोशिश की है
कृपया एक नज़र देख लें,...यदि आपको आवश्यक लगे ( क्योंकि यहाँ केवल एक ही पंक्ति हरे रंग में है ) तो निम्न संशोधन करने की ज़हमत करें -
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क ख ग घ की चर्चा होती है , अक्षर शब्द बन पाते है।-- "अक्षर" के स्थान पर "वर्ण"
त थ द ध गुंजन करते जाते , माला से सज जाते है।।
वर्णमाला तो शुरुआत है, वेद यही लिखवाती है।
ग्रंथों का निर्माण कराती ,निरक्षरता हर जाती है ।।--"निरक्षरता हर जाती है"के स्थान पर "निरक्षरता मिटाती है"
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ये हिंदी का अपना घर है ,अतिथि बन अब न आएगी । --"अतिथि बन अब न आएगी "के स्थान पर"अतिथि बन न आएगी"
ह्र्दय में तो रहती है सदा ,जुबां पर रच जाएगी।।-- "जुबां पर " के स्थान "भाषा में "
ककहरा संसार में गूंजे ,बड़ी सरल सी आशा है ।
हिंदी की शान बढ़ाएंगे ,अपनी मातृभाषा है।।--"अपनी मातृभाषा"के स्थान पर "हमारी मातृभाषा"
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आदरणीय आशा करती हूँ कि आप इसे यथासंभव प्रतिस्थापित करने की कृपा करेंगे । सादर ।
नेट की खराबी के कारण मैं अपनी रचना पर सबकी प्रतिक्रिया का भी आभार प्रकट नहीं कर पाई | अतः इस पोस्ट के माध्यम से उन सभी रचनाकारों का हार्दिक आभार जिन्होंने प्रस्तुति को पढ़ा ,सराहा व त्रुटियों के बारे में भी बताया। ...मैं अभी लेखन का क ख ग सीख रही हूँ ,ऐसे में गलतियां जानना मेरे लिए बहुत जरुरी है। सादर
आदरणीया अलका चंगा जी, आयोजन से आपकी संलग्नता का स्वागत है.
आदरणीया, एक तथ्य साझा करना चाहूँगा. जब आप क ख ग घ या च छ ज झ आदि वर्णों का शब्दों की तरह उच्चारण करती हैं तो ये दीर्घ मात्रिक तौर पर उच्चारित हैं न ? बरगद या पनघट की तरह तो कखगघ या चछजझ का उच्चारण नहीं होता न ? इनका उच्चारण अलग-अलग वर्ण होने के साथ अलग-अलग होता है. और उनकी प्रकृति दीर्घ की हो जाती है.
आगे आप समझ गयी होंगीं, कि इन्हें कैसे व्यवहार करना है.
दूसरी बात, आप जिस बन्द मेम् यापंक्ति में जो सुधार करना है उसके हिस्से को इंगितन कर उस पूरे बन्द को लिख दें. आपके इतना करने मात्र से मुझे आपसे महती सहयोग मिलेगा.
विश्वास है, आप अपेक्षा के अनुसार सुधार कर उक्त बन्द को इकट्ठे लिख कर साझा करें.
सादर
आदरणीय श्री सौरभ पांडेय जी, मार्गदर्शन के अनुसार रचना में सुधार का प्रयास किया है कृपया एक नज़र देख लें.... कृपया बताने का कष्ट करें कि अब ये दुरुस्त हो गए या और सुधारा जाये ....
रचना का दूसरा छंद:
क ख ग घ की चर्चा होती है , अक्षर शब्द बन पाते है //
त थ द ध गुंजन करते जाते , माला से सज जाते है //
वर्णमाला तो शुरुआत है, वेद यही लिखवाती है //
ग्रंथों का निर्माण कराती ,निरक्षरता हर जाती है //
के स्थान पर
क ख की चर्चा होती है ,वर्ण शब्द बन पाते है।
त थ गुंजन करते जाते , माला से सज जाते है।।
वर्णमाला तो शुरुआत है, वेद यही लिखवाती है।
ग्रंथों का निर्माण कराती ,निरक्षरता मिटाती है ।।
...
रचना का अंतिम छंद:
ये हिंदी का अपना घर है ,अतिथि बन अब न आएगी //
ह्र्दय में तो रहती है सदा ,जुबां पर रच जाएगी
ककहरा संसार में गूंजे ,बड़ी सरल सी आशा है //
हिंदी की शान बढ़ाएंगे ,अपनी मातृभाषा है //
के स्थान पर
ये हिंदी का अपना घर है ,अतिथि बन न आएगी ।
ह्र्दय में तो रहती है सदा ,भाषा में रच जाएगी।।
ककहरा संसार में गूंजे ,बड़ी सरल सी आशा है ।
हिंदी की शान बढ़ाएंगे ,हमारी मातृभाषा है।।
.
अगर अब सही हो तो कृपया प्रतिस्थापित करने की कृपा करें । सादर
जय-जय !
अभ्यासरत रहें. यथा निवेदित तथा संशोधित
आदरणीय सौरभ पांडेय जी ,नमस्कार... यहाँ से सभी रचनाएँ हटा दी गई है ....कृपया बताने का कष्ट करें की इन सभी रचनाओ का अब क्या किया जायेगा ? सादर
अरे ! ये कैसे ??? ..ऐसा तो होता ही नहीं ! कुछ समझ में नहीं आ रहा है. संकलन का कार्य श्रम-साध्य कार्य है और पंक्तियों को चिह्नित करना और तदनुरूप लोगों के सुधार का निवेदन ..
ये तो भारी गड़बड़ है.
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, इस छन्दोत्सव की रचनाये और संदर्भित चर्चा पढ़ी मैने।बहुत सारगर्भित एवं ज्ञानवर्धक जानकारी से परिपूर्ण है ।इसके लिये आपको आभार सहित साधुवाद ।
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