स्वर्णिम गुजरात अंतर्गत "वांचे गुजरात" (पढ़े गुजरात) अभियान ने अपना ले पकड़ लिया है, यह सच है क्या? गुजरात के एक-एक घर में अच्छे पुस्तक पहुंचे और नई पीढी में संस्कार के बीज बो ने के शुभ आशय से मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने "वांचे गुजरात" का अभियान चलाया है | जिसमें "तैरते पुस्तक" की भी योजना है | जिसके तहत पुस्तकों को एक से दूसरे तक पहुंचाने का उद्देश्य है | उस सन्दर्भ में थोड़ी बातें खुले मन से करनी है | नरेन्द्र मोदीजी जितने अभिनंदन दें उतने कम है | क्यूंकि उन्हों ने कईं दृष्टिवंत कार्यक्रम दिएं है | उसमें आलोचना भी तो हो सकती है | शुरुआत करना भी बड़ी बात है | "वांचे गुजरात" के बारे में कुछ बातें रखता हूँ |
गुजरात के ही भूज शहर में श्री सहजानंद रूरल डेवलपमेंट ट्रस्ट है | उस ट्रस्ट ने घर-घर में पुस्तक पहुँचाने का कार्य तो 1992 से शुरू कर दिया है | उस विचार की प्रेरणात्मक बात कहूं | श्री केशवलाल प्रेमजी भूडिया और कानजीभाई प्रेमजी भूडिया, दोनों सगे भाई | हीरे के सौदागर केशवलाल को किसी मित्र ने दंताली वाले गुजराती साहित्यकार स्वामी सच्चिदानंद के प्रवचन की टेप सुनाई थी | सुनकर केशवलाल को लगा कि आजतक हमलोग आकाश में रहे देवताओं की कल्पनातीत बातें करते रहें है | मगर यह स्वामी तो ज़मीन के देवों की बातें करते हैं | स्वामीजी के विचारों के साथ केशवलाल को वैचारिक साम्यता का अहसास हुआ | उन्हों ने भूज शहर में अपने कुछ दोस्तों से चर्चा की | उसी के फलस्वरूप सहजानंद ट्रस्ट की स्थापना हुई | शुरू में ज़रूरतमंद महिलाओं को हीरे के कारोबार में काम दिया गया | उसीमें से एक विचार आया, अगर पत्थर को घिसकर हीरा बनाया जा सकता है तो इंसानों को क्यूं नहीं? इंसानों के मन में अच्छे विचारों का बीज बोने के लिएँ पुस्तकों से अच्छा क्या होगा भला ?
"वांचे गुजरात" अंतर्गत श्री नरेन्द्रभाई मोदी का उद्देश्य यही है मगर उनका स्टाईल अलग है न? हे मोदीसहब, आप तो छोटे लोगों के इन्सान हैं | तो सुनिएँ इस छोटे आदमी को | "वांचे गुजरात" के लिएँ प्रतिदिन सरकारी अफसरों में बैठक होती रहती है | लाखों रुपयों का खर्च भी करतें है | ऐसे में कुछ बातें ज़रूरी है | सरकार के पास अपनी सोच और निर्णय शक्ति तो है | सामान्यरूप से सभी प्रकाशक 20 से 30 प्रतिशत की छूट देतें है | जब कि भूज का सहजानंद ट्रस्ट भूडिया ब्रदर्स के दान से 60 प्रतिशत छूट देकर घर-घर में पुस्तकों को पहुंचाते है | गुजरात सरकार के लिएँ यह कार्य कहाब कठिन है ? यूं भी स्कूल-कोलेज के लिएँ नियम और योजनाओं के तहत पुस्तकों की खरीदारी तो करनी ही पड़ती है | सरकारी बैठकों में ऐसे अधिकारीगन है, जिन्हों ने ज़िंदगी में कभी सरक्यूलरों से आगे कुछ पढ़ा ही नहीं | वह लोग क्या ख़ाक चर्चा करेंगे?
सुरेंद्रनगर में 2 , मई, 2010 को एक बैठक हुई थी | जिसमे श्री नरेन्द्र मोदी को "वांचे गुजरात" का मूल विचार देनेवाले श्री हर्षद शाह (गुजरात कमिटी के उपाध्यक्ष) उपस्थित थे | मुझे नम्रभाव से कहेना चाहिए कि सन 1992 में ही सहजानंद ट्रस्ट, भूज ने यह मन्त्र ही नहीं दिया बल्कि उसे साकार करने के लिए अबतक 138 से पुस्तक मेले का आयोजन किया और दूसरी संस्थाओं को पुस्तक मेले के लिए 60 शहरों में सहयोग भी दिया |
बड़े महत्व की बात यह है कि गुजरात सरकार चाहें तो प्रकाशकों से ही ज्यादा से ज्याद छूट लेकर खुद 20 -30 प्रतिशत रकम देकर सभी जिले, तहसील और गाँव तक पुस्तक मेले का आयोजन करें | जहां भी पुस्तक मेले का आयोजन हो वहां बिन राजाकीय स्थानिक कार्यकारों का सहयोग लें और स्थानीय साहित्यकारों के हाथों से ही उद्घाटन करवाएं | साहित्यकार एवं साहित्यप्रेमी शिक्षकों के द्वारा व्याख्यान भी हों | हालांकि स्कूलों में साहित्यकारों को जरुर बुलाया जाता है, मगर सरकारी अधिकारियों के पास किसे पसंद किया जय वह दृस्थी कहाँ? वो लोग भी स्थानीय राजनीज्ञों से प्रभावित है | ये गुजरात के समग्र शहरों-गाँवों की समस्या है |
यह लिखनेवाले नाचीज़ ने भी कईं पुस्तक मेले किये है, तभी ये लिख रहा हूँ | मैंने पुस्तकों की दुकान चार साल चलाई और एक लाख रुपये के घटे से.. अभी भी उबर नहीं पाया | मेरा हेतु स्पष्ट था | जितने रुपयों से खरीदारी हो, उसी रकम से पाठकों तक पुस्तक पहुँचाना | उम्मींद है कि गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी मेरे विचारों को अनुमोदन देंगे | वैसे तो दुनिया जानती है उन्हें कि काफ़ी समझदार है हमारे मोदीजी | आखिर हम सब का एक ही ध्येय है कि "वांचे गुजरात".... मगर मैं तो कहूँगा कि "वांचे भारत !!!"
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