For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैंने ठीक किया जो जुमा को एक दिन की छुट्टी ली...सोचा कि अब्बा के साथ manendragarh में जुमा की नमाज़ अदा की जायेगी...
अब्बा कितने खुश हो रहे थे मुझे देख कर...जब मैंने कहा कि बी पी आपको हो नही सकती...अब्बा हंस दिए...तो क्या डॉक्टर की मशीन झूठी है...बेटा बहला रहा है...
मैंने देखा अब्बा कमज़ोर हो गए हैं...लेकिन अन्दर से कितने मज़बूत हैं अब्बा...
वाकई...अध्यापक रहे हैं वह...कितनो को पढाया है उन्होंने...मैं उन्हें पढ़ा सकता हूँ क्या...इत्ती सी ढाढस बंधाकर एक टेबलेट का असर तो उन्हे दिया ही जा सकता है...
अब्बा समझते हैं कि बेटा नौकरी से समय निकालकर आया है...
अब्बा वजू बना कर तैयार होते हैं...खादी का कमीज़-पायजामा और सर पर गांधी टोपी...नगर के खादी-भंडार से गाँधी जयंती के छूट के अवसर पर कपडे-टोपी खरीदते हैं अब्बा...
आलमारी से मजमुआ इतर निकल लाये और मुझे भी कपडे पर इतर लगाने को दिया...मजमुआ इत्र...कानपुर वाले इत्र-फरोश दीक्षित जी आते हैं तो इत्र बेच जाते हैं...ये खुशबु अब पुराने लोगों के पास ही मिलेगी...
अब्बा के साथ कदम मिलते मस्जिद की तरफ निकले तो लगा जब मैं बच्चा था तब इसी तरह उनके साथ जाता हूँगा मस्जिद...
दोपहर की धुप में अब्बा के उजले कपडे...
पवित्रता का अनोखा अहसास...
एक अधेड़ स्त्री पैर छूकर प्रणाम करती है...
अब्बा बताते हैं---"इसे पढाया हूँ...इसके बच्चों को भी पढ़ाया हूँ...!"
कोई उनका अभिवादन करता तो बताते---'बड़ा बेटा है....'
मैं खटाक से नमस्ते करता हूँ...
एकदम बच्चा बन गया हूँ...
मुझे याद आ रहे हैं वो दिन जब अब्बा के साथ निकलो तो सिमटे सिकुड़े चालू...मजाल कि चप्पल घिसटने की आवाज़ उभरे...अचानक अब्बा का आदेश...वकील साहेब आ रहे हैं...उन्हें नमस्ते करो...या मुंशी जी की पास पहुंचू तो उन्हें प्रणाम करना...
ऐसे ही संस्कार नही आया करते ज़िन्दगी में...

(मौलिक अप्रकाशित)

Views: 702

Replies to This Discussion

आदरणीय सुहैल साहब.. . दिल भर आया. आँखें नम हो गयी. अचानक लिखे अक्षर-वाक्य धुँधले हो गये. संस्कार वाकई बस यों नहीं आ जाते. हर बुज़ुर्ग़ को बिल्ली-बिलौटा बन नन्हीं बिल्लियों को रास्ता दिखाना पड़ता है ! आपने बहुत आत्मीयता से आम ज़िन्दग़ी के एक-एक विन्दु को सहेज कर तह किया है. साहब, अंदाज़ का शफ़्फ़ाक़ होना ही था.


आपने जो तथ्य और विन्दु इस संस्मरण में उठाये हैं वे सुगढ़ समाज की नींव हैं. गंगा यों ही नहीं बहती उसके मायने हैं. जमुना यों ही अपनी समस्त धार लिये गंगा में घुल नहीं जाती उसके अपने अलहदे अर्थ हैं. इन धाराओं के इस मिलन-घुलन को नाम चाहे जो मिले, इनकी सात्विकता ही इनका मूल है. यही मूल इस धरती की ताक़त है जिसकी उपज पर कभी किसी को शक नहीं रहा है. भले गंगा या जमुना के किनारों पर अन्यमनस्कता के कारण जहाँ-तहाँ जब-तब खर-पतवार उग आते रहें. नाम उन खर-पतवारों का नहीं बल्कि धाराओं के मिलन-घुलन की सात्विक आत्मीयता का होता है. 
सादर

धन्यवाद सौरभ साहेब....

संस्कार एकदिन में नहीं आ जाते।जब तक बुजुर्गो का साथ होता है ,तब तक सीखते है।और यही वह धरोहर है ,जो हमें जीवन की जटिल,अँधेरी तथा पथरीली राहों में पथ प्रदर्शक बन उत्तम मार्ग पर चलने की राह दिखाती है।
अति उत्तम रचना है ,आपकी

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
10 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
10 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
13 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
23 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service