For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ब्राह्मण
=====
पंचकोशों को परिपूर्ण बनाया जाना चाहिये परंतु कैसे?

उन्हें यम नियम और साधना के सभी पाठों के द्वारा सम्रद्ध बनाया जा सकता है। अन्नमय कोश को आसनों के द्वारा, काममय कोश को यम और नियम साधना के द्वारा, प्राणायाम के द्वारा मनोमय कोश , अतिमानस कोश प्रत्याहार से ,विज्ञानमय कोश धारणा से और हृरण्यमय कोश ध्यान से परिपक्व वनाया जा सकता है।

केवल ध्यान समाधि ही आत्मा तक पहुंचाती है। पवित्र व्यक्ति वही हैं जिन्हें अपने पंचकोकोशों को सम्रद्ध करने की तीब्र इच्छा होती है। मानव शरीर पंच कोशों से निर्मित होता है जबकि साधना करने का अभ्यास आठ स्तरों पर होता है।

आध्यात्मिक साधना करना ही धर्म है, जो पंचकोशों की व्याख्या नहीं करता वह धर्म नहीं है वह मतवाद है।


सूक्ष्म कारण मन अर्थात् हिरण्यमयकोश के ऊपर जो लोक है उसे सत्यलोक कहते हैं। जब साधक अपने इस छुद्र मैंपन को सत्यलोक की वास्तविकता में मिला देते हैं तब वे सगुण ब्रह्म में अपने को पूर्णतः स्थापित कर लेते हैं। इस अवस्था में साधक की अस्मिता यदि चूर चूर हो कर पुरुष में एकीकृत हो जाती है तब वह निर्गुण ब्रह्म से साक्षात्कार करता है। इसे ही सत्यलोक या ब्रह्मलोक कहते हैं, वे जो इस लोक में अपनी स्थापना कर चुके हैं केवल वही ब्राह्मण कहलाने के अधिकारी हैं।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 694

Replies to This Discussion

आदरणीय टीआर सुकुल जी, आपने ब्राह्मण या ब्रह्मण या पुरूष की अवधारणा के क्रम में उपयुक्त अवयवों की इंगितों में चर्चा की है. यह अवश्य है कि ऐसे इंगित पाठकों से पूर्वाभ्यास की अपेक्षा करते हैं. अन्यथा, सारे टर्म या जार्गन न केवल  हवा-हवाई महसूस होंगे, वाचाल पाठक फिकरा कस देगा कि ऐसा किसने देखा है ! 

आप अन्यथा न लें तो मैं एक आपबीती साझा कर रहा हूँ. 

मेरे हैदराबाद प्रवास के दौरान मेरे संपर्क में ग्रामीण परिवेश के कुछ अनपढ़ लोग हुआ करते थे. उनमें से एक ’जागरुक’ युवक जो हट्ठा-कट्ठा भी था और मुखर भी था, गाहे-बगाहे ’रेसेस’ के दौरान कई बातों का पिटारा लेकर बैठ जाता था. बातों बातों में एक दिन हवाईजहाज़ की बात चली. तो उसने अपनी जिज्ञासा ज़ाहिर की कि मैं उसे बताऊँ कि वायुयान कितने बड़े होते हैं. मैंने कई वायुयानों के आकार की बात की. वह बड़े आकार वाले वायुयानों के प्रति न केवल सशंकित था, बल्कि पता चला कि दूसरे दिन उसने मुझे ’भाँजू’ या पता नहीं क्या-क्या घोषित कर दिया था. एक दिन उसे शमसाबाद एयरपोर्ट ले जाने का संजोग बना. वहाँ उसने पहली बार नंगी आँखों से एयरपोर्ट पर वायुयानों को देखा. उसके चेहरे के हाव-भाव और उसकी प्रतिक्रिया को मैं आजतक याद कर बेसाख़्ता हँसता हूँ. और फिर उसका पूछना कि .. ’साहेब ये हवा में उठता कैसे है, उड़ना तो दूर !’ 
हमने समझाया कि जितना तुम जानते हो न इस संसार को तुम उतने से ही आँकते हो.

हममें से अधिकांश की दिक्कत यही है. किन्तु, जैसे-जैसे अनुभव और ज्ञान बढ़ता जाता है, आदमी की तथ्यात्मक स्वीकार्यता और वैचारिक गँभीरता बढ़ती जाती है.
विश्वास है, आप मेरे कहे का अन्वर्थ समझ गये होंगे.

अब आगे,

व्यक्तित्व विकास की प्रक्रिया पंचकोशों के हिसाब से उच्च से उच्चतर की परिकल्पना का हामी है. आपने अपनी जानकारी के अनुसार कोशों को काममयकोश, हिरण्मयकोश आदि-आदि नाम दिया है. और इसी क्रम में पांच की जगह कुल नाम छः हो गये हैं ! जबकि पतंजलि के योगसूत्र या घेरण्ड संहिता या वेदान्त की अवधारणा पंचकोशों में क्रमशः अन्नमयकोश, प्राणमयकोश, मनोमयकोश, विज्ञानमयकोश और आनन्दमयकोश को परिभाषित करता है. इसके अलावा इनको मिले सारे नाम विशेष ’मठ’ या ’वाद’ के अनुसार निर्धारित होते हैं. मैं उन्हें गलत या सही नहीं कहता हूँ लेकिन उचित होता मूल संज्ञाओं से छेड़छाड़ न की जाती. 

आपने , आदरणीय, यदि इस आलेख के क्रम में पंचकोशों की अवधारणा का कारण, उनकी दशा और प्राप्य, उनकी सीमाएँ आदि कहते चलते तो आम पाठक अपनी प्रकृति के अनुसार उनसे तारतम्यता बिठाता चलता. फिर, उच्च से उच्चतर कोशों में जाने की अवधारणा के क्रम में अष्टांग योग के अवयव समीचीन प्रतीत होते.

यम-नियम का शब्द ही अनजान पाठक को भरमा सकता है जबकि इनके भी अलग-अलग पाँच-पाँच आचरण बताये गये हैं. ताकि निजी तौर व्यति और समाज मानसिक और व्यावहारिक तौर पर सुगढ़ हो सके ताकि आगे के अवयवों पर सहज भाव बना रह सके. जैसेकि, यम और नियम के आगे आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार को साध कर शारीरिक और मानसिक रूप से व्यक्ति निजी और समूह के तौर पर सक्षम हो सके. ताकि, धारणा की समझ, ध्यान की एकाग्रता और समाधि का वैचारिक प्रस्फुटीकरण का अर्थ न केवल स्पष्ट हो, बल्कि इन्हें हवा-हवाई बतला कर कोई वाचाल बकवाद न कर सके.

होता यह है आदरणीय, कि एक तो आमजन / आम पाठक ऐसे परिभाषात्मक शब्दों (टर्म या जार्गन) को जानता ही नहीं, और इधर-उधर से कुछ पढ़-सुन कर बकवास करता फिरता है. ऐसे में आप जैसे लेखकों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है. जो इस चेष्टा में होते हैं कि वे ऐसे विषयों पर कुछ  साझा करें. 

सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
yesterday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service