For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देवता, उपदेवता और अपदेवता
------------------------------------

अविद्यामाया के कुहरे में अज्ञानी और अंधविश्वासी लोग परमपुरुष को नहीं देख सकते। अनेक लोग ‘उपदेवता ‘ को भय के कारण या किसी प्रकार की भौतिक इच्छाओं की पूर्ति होने के लालच में उन्हें पूजने लगते हैं। जैसे, बानबीबी या दक्षिणा राय (बंगाल में), वनदेवी (उत्तर और मध्यप्रदेश में) को लोगों ने इस आशा में मान्यता दे रखी है कि वह देवी शेर जैसे जंगली जानवरों से उनकी रक्षा करेगी। ‘‘हैजा‘‘ की महामारी से बचने के लिये ‘ओलाइ चंडी‘ और ‘‘बड़ी माता‘‘ की बीमारी से बचने के लिये ‘शीतला देवी‘ साॅंपों के भय से बचने के कलिये ‘मनसा देवी‘ आदि की कल्पना की गयी और इन सबको उपदेवता कहा गया। महिलायें ‘लक्ष्मी‘ की पूजा साल भर करती रहती हैं ताकि घर में समृद्धि बनी रहे, ‘सेतेरा और सुवाचनी‘ धार्मिक समारोहों में शाॅंति बनाये रखने के लिये पूजी जाती हैं। ‘‘षष्ठी और नील‘‘ (बिहार में) बच्चों की भलाई के लिये, बीमारी के भय से ‘‘श्मशान काली और रक्शेकाली‘‘ (बंगाल में) की पूजा की जाती है। संस्कृत में इन्हें उपदेवता कहा जाता है क्योंकि वे परमपुरुष नहीं हैं जो कि आध्यात्मिक संसार के यथार्थतः उपास्य हैं। इनके अलावा बंगाल और अन्य प्रदेशों में इन्हीं से मिलते जुलते अनेक अन्य उपदेवता हैं जैसे, मंगलचंडी,, सत्यपीर, हरदौल आदि।

उपदेवता यथार्थतः लौकिक देवी देवता हैं जिनमें किसी किसी का तो स्थानीय भाषा में ध्यान मंत्र बनाया गया है परंतु अधिकाॅंश का नहीं है। इस प्रकार के देवी देवता बौद्ध और जैन काल के हैं और उनके पश्चातवर्ती काल में उपदेवता के रूप में मान्यता पाते जा रहे हैं या पा चुके हैं। उन्हें सामाजिक मान्यता मिलती रहे इसके लिये उन सभी को किसी न किसी प्रकार शिव से संबंधित किया गया है क्यों कि शिव के बिना उनका कोई महत्व नहीं होता। इनकी पहचान यही है कि वे लौकिक और स्थानीय भाषा और व्यावहारिक संबंधों से जुड़े होते हैं उनका कोई बीज मंत्र या उद्गम का श्रोत नहीं पाया जाता, केवल परंपरायें ही उनका आधार होती हैं। कुछ लोग भूतों को भी उपदेवता इस भय से कहने लगे हैं कि अन्यथा वे नाराज हो कर प्रताड़ित करने लग जायेंगे। परंतु संस्कृत में शब्द ‘उपदेवता‘ को भूतों के लिये प्रयुक्त नहीं किया जाता वरन् ‘अपदेवता‘ कहा जाता है। ‘उप‘ का अर्थ है निकट और ‘अप‘ का अर्थ है बिलकुल विपरीत। इसलिये अपदेवता का अर्थ हुआ देवता के गुणों के विपरीत व्यवहार करने वाला।

ध्यान रहे, आध्यात्मिक साधक जो ज्ञान, कर्म और भक्ति में विश्वास करते हैं और इन्हीं के द्रढ़ पथ पर चलते हैं वे किसी भी प्रकार के उपदेवता या अपदेवता को मान्यता नहीं देते वे केवल परमपुरुष के ही उपासक होते हैं। ऋषि याज्ञवल्क्य के अनुसार देवता वह है जिसका व्यक्तित्व और जीवनदर्शन एक समान हो गया है। ‘‘ द्योतते क्रीडते यस्मात् उदयते द्योतते दिवि, तस्मात् देव इति प्रोक्तव्यः स्तूयते सर्व देवतैः।‘‘ अर्थात् सूर्य जैसे अनेक दिवाकर जिनके भीतर क्रीडा करते और जिनसे प्रकाश पाते हैं , जिनकी अन्य सभी तथाकथित देवता स्तुति करते रहते हैं, उन्हें ही देव कहते हैं।

स्पष्ट है कि एकमात्र परमपुरुष ही उपास्य हैं और मानव मात्र का लक्ष्य भी वही एकमेव अद्वितीय हैं, अन्य देवता, उपदेवता या अपदेवता नहीं।
(मौलिक और अप्रकाशित)

Facebook

Views: 1120

Replies to This Discussion

जैसे हम, वैसे हमारे देव ! जैसी हमारी प्रकृति, वैसा हमारा समर्पण और वैसी हमारी भक्ति ! 

:-)))

इस विषय पर बाद में आता हूँ, आदरणीय टीआर सुकुल जी. 

सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"पुनः आऊंगा माँ  ------------------ चलती रहेंगी साँसें तेरे गीत गुनगुनाऊंगा माँ , बूँद-बूँद…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
6 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
18 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service