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बहुत खूब ..वाह
बहुत उम्दा अशआर आदेश जी .... तरही ग़ज़ल की अवधि ख़त्म हो गयी वर्ना आप की ग़ज़ल पे चर्चा वहीँ होती
कि टूटे पंजा-ओ-पर के सिवा कुछ और नहीं
क़फ़स = पिंजरा
शजर = पेड़
मेरी उड़ान की चाहत है बरक़रार अभी
तमन्ना ताक़ते-पर के सिवा कुछ और नहीं
नज़र नज़र की नज़र में भी फ़र्क़ होता है
नज़रशनास, नज़र के सिवा कुछ और नहीं
नज़रशनास = दृष्टि को समझने,जानने या पढने वाला
हमें ये मील के पत्थर, ऐ राहबर, न दिखा
कि शौक़ हमको सफ़र के सिवा कुछ और नहीं
राहबर = मार्गदर्शक
तुम्हीं को देख के खोला है आज व्रत हमने
तुम्हारा चेहरा क़मर के सिवा कुछ और नहीं
क़मर = चन्द्रमा
अज़ल से ही नहीं इस फ़लसफ़े के हम क़ायल
'हयात सोज़े-जिगर के सिवा कुछ और नहीं'
ख़बर तो गर्म थी अच्छे दिनों की आमद की
ख़बर ख़बर थी, ख़बर के सिवा कुछ और नहीं
सनम ने एक भी तो इल्तिजा नहीं मानी
क्या उसके दिल में हजर के सिवा कुछ और नहीं?
सनम = पत्थर (या भगवान की) मूर्ति, प्रेमिका
हजर = पत्थर