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Comment by DR ARUN KUMAR SHASTRI on November 16, 2020 at 9:25pm

resp manju ji 

ताज़गी दे गया है यादों को
एक सूखा गुलाब देखा है।

vaah vaah umda kaavy lekhan hai aapkaa 

Comment by DR ARUN KUMAR SHASTRI on November 16, 2020 at 9:24pm

girish ji aapki kavita padhi naman veeron ko - behtreen likhaa aapne sunder srijan ke liye shubhkaamnayein 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 3, 2020 at 9:55pm

उस्ताद ए मुहतरम जनाब समर कबीर साहब आदाब । अभी कमेंट्स बॉक्स में आपके मुबारक कमेंट्स देख कर ख़ुशी और सुकून का अह्सास हुआ और इत्मीनान हुआ कि      ओ बी ओ फिर से आपकी रहबरी, इस्लाह, तनक़ीद और दुआ़ओं से सरफ़राज़ होता रहेगा। ओ बी ओ फैमिली आपकी सेहत, आ़फ़ियत और लम्बी उम्र के दुआ़गो है। 

Comment by Gajendra Dwivedi "Girish" on September 16, 2019 at 5:49pm

शीर्षक : नमन वीरों को

हृदय शूल को और बढ़ाकर,

कैसे शमन कर पाउँगा!

अपने ही प्रत्यक्ष खड़े हों,

कैसे दमन कर पाउँगा!

द्वेष राग से दूर खड़ा मैं,

अनथक सतत निभाऊंगा!

फूटेगा जब अन्तस से फिर, 

सबका हवन कर जाउंगा!!

 

माटी की सौगंध मुझे है,

पग ना कभी हटाऊंगा!

प्रलय गिरे हिमसागर से तो.

आरुणि सा अड़ जाउंगा!

जान की बाजी खेलकर भी,

देश की आन बचाऊंगा!

पैटन भी डर जाएगा जब मैं,

हमीद सा टकराऊँगा!

 

समझ देश का रक्षक मुझको, 

दुश्मन मार गिराऊंगा।

नहीं रहूंगा कहीं दुबक के, 

भाला बन टकराऊंगा।।

भूख-प्यास सब सहकर भी मैं, 

पग ना कभी हटाउंगा।

गर सीमा पर आये अकबर,  

मैं राणा बन जाऊँगा।1।

 

#गिरीश

#भिलाई_3

१६.०९.२०१९

Comment by Manju Saxena on September 4, 2019 at 4:26pm

एक ग़ज़ल

रात को आफ़ताब देखा है
ख्वाब हमने जनाब देखा है।

जिनके रुख पर नका़ब थे कितने
उनको भी बेनकाब देखा है।

बात करते थे कल हवाओं से
आज खाना ख़राब देखा है।

जिसको समझे थे अर्श की माटी
शख्स वो लाजवाब देखा है।

फूस के घर मे चैन से सोता
एक ऐसा नवाब देखा है।

दिल की गहराईयों मे ही”मंजू”
हर ग़मों का जबाब देखा है।

ताज़गी दे गया है यादों को
एक सूखा गुलाब देखा है।

Comment by Prakash Patwardhan on May 24, 2019 at 7:51pm

तेरा मुखडा़ चाँद का टुकडा़ लगता है 
चहरे पर तिल काला  प्यारा लगता है I 

कैसे कह दूँ प्यार नहीं हम को उन से  
मुश्किल पर इज़हारे तमन्ना लगता है I

वादे  झूठे  आम  सियासत  की  दुनिया 
फिर भी क्यों मतदाता फँसता लगता है ! 

जीवन का है मर्म कर्म को धरने का 
बैठा  ठाला  बेजा़ँ  फीका लगता है I 

छोड गये क्या हम को वो इस दुनिया में 
जीना  तो  बस  मात्र  बहाना  लगता  है I 

साथ  सभी थे  यार  चुनावी दंगल में   
खा़ल खिंचना आज सुहाना लगता है I

गहरी  रातों  में   हमराही  बनकर  यूँ
"चाँद बता तू कौन हमारा लगता है"

                "मौलिक व अप्रकाशित"
               -  प्रकाश पटवर्धन, पुणे.

Comment by विनोद 'निर्भय' on November 9, 2018 at 6:43pm

मेरी प्रोफाईल पिक डाउनलोड नहीं हो पा रही है......कृपया सुझाव दें

Comment by babitagupta on May 5, 2018 at 6:21pm

आदरणीय सर जी ,सेव की हुई रचना कहा मिलेगी ,कृपया करके बताईयेगा.

Comment by Seema Singh on September 5, 2017 at 10:26am
कविता जी! आपने कथा गलत जगह पोस्ट कर दी है।
Comment by Amit Tripathi Azaad on July 30, 2016 at 3:08pm

आके सजन लग जा गले सावन जले भादो जले
अंबर की छाया तले दो दिल मिले संग संग चलें
आके सजन .....

किस बात से मजबूर है किस बात से है तू ख़फ़ा
कियूँ ख़्वाब में आता है तू कियूँ
बन गया है बेवफ़ा
कियूँ दूर तक थे हम चले
सावन जले भादो जले ...२

तू तो मेरा हमराज़ था मैं थी तेरी जाने वफ़ा
कैसी ख़ता हमसे हुई बूँदे हुई हमसे ख़फ़ा
हँसके मिटा दे शिकवे गिले सावन जले भादो जले ....२

मैं जोगन बन बन फिरूँ तेरे लिए बिरहन भई
दिल में भी तू साँसों में तू छोड़ा जहाँ तेरी हुई
आँखों की पलकों तले सावन जले भादो जले
आके सजन लग ..

अमित आज़ाद

Comment by Abid ali mansoori on November 4, 2015 at 9:01pm

महत्वपूर्ण जानकारी!

Comment by Ajay Kumar Sharma on October 4, 2015 at 12:45pm

समस्त प्रियजनों को प्रणाम।।

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