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Comment
resp manju ji
ताज़गी दे गया है यादों को
एक सूखा गुलाब देखा है।
vaah vaah umda kaavy lekhan hai aapkaa
girish ji aapki kavita padhi naman veeron ko - behtreen likhaa aapne sunder srijan ke liye shubhkaamnayein
उस्ताद ए मुहतरम जनाब समर कबीर साहब आदाब । अभी कमेंट्स बॉक्स में आपके मुबारक कमेंट्स देख कर ख़ुशी और सुकून का अह्सास हुआ और इत्मीनान हुआ कि ओ बी ओ फिर से आपकी रहबरी, इस्लाह, तनक़ीद और दुआ़ओं से सरफ़राज़ होता रहेगा। ओ बी ओ फैमिली आपकी सेहत, आ़फ़ियत और लम्बी उम्र के दुआ़गो है।
शीर्षक : नमन वीरों को
हृदय शूल को और बढ़ाकर,
कैसे शमन कर पाउँगा!
अपने ही प्रत्यक्ष खड़े हों,
कैसे दमन कर पाउँगा!
द्वेष राग से दूर खड़ा मैं,
अनथक सतत निभाऊंगा!
फूटेगा जब अन्तस से फिर,
सबका हवन कर जाउंगा!!
माटी की सौगंध मुझे है,
पग ना कभी हटाऊंगा!
प्रलय गिरे हिमसागर से तो.
आरुणि सा अड़ जाउंगा!
जान की बाजी खेलकर भी,
देश की आन बचाऊंगा!
पैटन भी डर जाएगा जब मैं,
हमीद सा टकराऊँगा!
समझ देश का रक्षक मुझको,
दुश्मन मार गिराऊंगा।
नहीं रहूंगा कहीं दुबक के,
भाला बन टकराऊंगा।।
भूख-प्यास सब सहकर भी मैं,
पग ना कभी हटाउंगा।
गर सीमा पर आये अकबर,
मैं राणा बन जाऊँगा।1।
#गिरीश
#भिलाई_3
१६.०९.२०१९
एक ग़ज़ल
रात को आफ़ताब देखा है
ख्वाब हमने जनाब देखा है।
जिनके रुख पर नका़ब थे कितने
उनको भी बेनकाब देखा है।
बात करते थे कल हवाओं से
आज खाना ख़राब देखा है।
जिसको समझे थे अर्श की माटी
शख्स वो लाजवाब देखा है।
फूस के घर मे चैन से सोता
एक ऐसा नवाब देखा है।
दिल की गहराईयों मे ही”मंजू”
हर ग़मों का जबाब देखा है।
ताज़गी दे गया है यादों को
एक सूखा गुलाब देखा है।
तेरा मुखडा़ चाँद का टुकडा़ लगता है
चहरे पर तिल काला प्यारा लगता है I
+
कैसे कह दूँ प्यार नहीं हम को उन से
मुश्किल पर इज़हारे तमन्ना लगता है I
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वादे झूठे आम सियासत की दुनिया
फिर भी क्यों मतदाता फँसता लगता है !
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जीवन का है मर्म कर्म को धरने का
बैठा ठाला बेजा़ँ फीका लगता है I
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छोड गये क्या हम को वो इस दुनिया में
जीना तो बस मात्र बहाना लगता है I
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साथ सभी थे यार चुनावी दंगल में
खा़ल खिंचना आज सुहाना लगता है I
+
गहरी रातों में हमराही बनकर यूँ
"चाँद बता तू कौन हमारा लगता है" I
"मौलिक व अप्रकाशित"
- प्रकाश पटवर्धन, पुणे.
मेरी प्रोफाईल पिक डाउनलोड नहीं हो पा रही है......कृपया सुझाव दें
आदरणीय सर जी ,सेव की हुई रचना कहा मिलेगी ,कृपया करके बताईयेगा.
आके सजन लग जा गले सावन जले भादो जले
अंबर की छाया तले दो दिल मिले संग संग चलें
आके सजन .....
किस बात से मजबूर है किस बात से है तू ख़फ़ा
कियूँ ख़्वाब में आता है तू कियूँ
बन गया है बेवफ़ा
कियूँ दूर तक थे हम चले
सावन जले भादो जले ...२
तू तो मेरा हमराज़ था मैं थी तेरी जाने वफ़ा
कैसी ख़ता हमसे हुई बूँदे हुई हमसे ख़फ़ा
हँसके मिटा दे शिकवे गिले सावन जले भादो जले ....२
मैं जोगन बन बन फिरूँ तेरे लिए बिरहन भई
दिल में भी तू साँसों में तू छोड़ा जहाँ तेरी हुई
आँखों की पलकों तले सावन जले भादो जले
आके सजन लग ..
अमित आज़ाद
महत्वपूर्ण जानकारी!
समस्त प्रियजनों को प्रणाम।।
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महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
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