For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मंजूषा 'मन'
  • Female
  • बलौदा बाजार
  • India
Share on Facebook MySpace

मंजूषा 'मन''s Friends

  • जयनित कुमार मेहता
 

मंजूषा 'मन''s Page

Profile Information

Gender
Female
City State
बलौदा बाजार
Native Place
जबलपुर
Profession
Programme Officer
About me
मैं एक समाज सेवा के क्षेत्र में कार्य करती हूँ। कविता मेरे लिए ऐसे है जैसे साँस लेना।

Comment Wall (1 comment)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 11:36pm on January 19, 2016,
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
said…

आपका अभिनन्दन है.

ग़ज़ल सीखने एवं जानकारी के लिए

 ग़ज़ल की कक्षा 

 ग़ज़ल की बातें 

 

भारतीय छंद विधान से सम्बंधित जानकारी  यहाँ उपलब्ध है

|

|

|

|

|

|

|

|

आप अपनी मौलिक व अप्रकाशित रचनाएँ यहाँ पोस्ट (क्लिक करें) कर सकते है.

और अधिक जानकारी के लिए कृपया नियम अवश्य देखें.

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतुयहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

 

ओबीओ पर प्रतिमाह आयोजित होने वाले लाइव महोत्सवछंदोत्सवतरही मुशायरा व  लघुकथा गोष्ठी में आप सहभागिता निभाएंगे तो हमें ख़ुशी होगी. इस सन्देश को पढने के लिए आपका धन्यवाद.

मंजूषा 'मन''s Blog

ग़ज़ल

ग़ज़ल

2122 1212 22

अब सुनाओ भी फैसला हमको।
जुर्म की दो कोई सज़ा हमको।

तुमको चाहा गुनाह था भारी,
खूब महँगी पड़ी वफ़ा हमको।

सोचते हैं कि अब किधर जाएँ,
रास्ता तो कोई दिखा हमको।

कुछ मुरव्वत जरा दिखा हम पर,
हर दफा तो न आजमा हमको।

हम वो हैं जो कभी नहीं टूटे,
चाहे जी भर के तू सता हमको।

मंजूषा मन

मौलिक एवं अप्रकाशित

Posted on September 6, 2017 at 11:19am — 6 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल

अब सुनाओ भी फैसला हमको।
जुर्म की दो कोई सज़ा हमको।

तुमको चाहा गुनाह था भारी,
खूब महँगी पड़ी वफ़ा हमको।

सोचते हैं कि अब किधर जाएँ,
रास्ता तो कोई दिखा हमको।

कुछ मुरव्वत जरा दिखा हम पर,
हर दफा तो न आजमा हमको।

हम वो हैं जो कभी नहीं टूटे,
चाहे जी भर के तू सता हमको।

मंजूषा मन

मौलिक एवं अप्रकाशित

Posted on September 6, 2017 at 11:17am — 2 Comments

ग़ज़ल

1222 1222 1222 1222



हमारे ग़म का उसको क्या कभी अंदाज होता है।

हमारी राह में कांटे जो वो हरबार बोता है।



कभी रूठे अगर जो हम तो ये भी याद रखना तू,

न फिर पायेगा हमको तू अगर इस बार खोता है।



बता इस ग़म का तुझपर क्यों नहीं कोई असर होता,

तू हर दम मुस्कुराता है हमारा दिल जो रोता है।



झमेले ज़िन्दगी के मुश्किलों से झेलते हैं हम,

अकेले जूझते हैं हम उधर उधर वो खूब सोता है।



अजब अपनी कहानी है रहे हैं हम निथरते ही,

बरसती आँख का…

Continue

Posted on August 22, 2017 at 12:00pm — 17 Comments

ग़ज़ल

ग़ज़ल



सर पे कैसी मुसीबत बड़ी आ गई।

देखिये फैसले की घड़ी आ गई।



साँस लेना मुनासिब भी लगता नही

ये हवा किस कदर नकचढ़ी आ गई।



दिल के साँपो को हम मार पाते नहीं,

साँप आया जो घर इक छड़ी आ गई।



ईंट पत्थर लगाकर मकां जब बना

लो हिफाजत को उसके कड़ी आ गई।



अब चमन में कहीं फूल खिलते नहीं,

पतझरों की अजब सी लड़ी आ गई।



रौशनी के लिए 'मन' मचलने लगा,

उसको बहलाने को फुलझड़ी आ गई।



मंजूषा मन



मौलिक एवं… Continue

Posted on August 14, 2017 at 6:28pm — 16 Comments

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
9 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service