कब तक ताकोगी पर मुख को, बनो सिंहनी आज।
श्याम नहीं अब आने वाले,स्वयं बचाओ लाज।
खड़े दुःशासन गली-गली पर,और सभा है मौन।
सहन हमेशा नारी करती,पीर समझता कौन।।
पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'
कोई चाभे खूब मलाई,कोई रोटी-नून।
सभी बराबर भारत में हैं,फिर क्यों चूसें खून।
कोई ऋण ले चंपत होता,कोई देता जान।
कलम बताने वाली मेरी, कैसा हिंदुस्तान।।
पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'
Posted on February 21, 2018 at 6:00pm — 5 Comments
कब तक ताकोगी पर मुख को, बनो सिंहनी आज।
श्याम नहीं अब आने वाले, स्वयं बचाओ लाज।
खड़े दुःशासन गली-गली पर, और सभा है मौन।
सहन हमेशा नारी करती,पीर समझता कौन।।
पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'
Posted on February 20, 2018 at 7:30pm — 6 Comments
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