For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Arvind Kumar
Share on Facebook MySpace

Arvind Kumar's Groups

 

Arvind Kumar's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
Mumbai, Maharashtra
Native Place
Darbhanga, Bihar
Profession
Marketing Manager

Arvind Kumar's Blog

बहुत कुछ खो चुके हैं हम (ग़ज़ल)

अना की कब्र पर जबसे, गुलों को बो चुके हैं हम,

हमें लगने लगा है, फिर से जिंदा हो चुके हैं हम।



उगेंगे कल नए पौधे, यकीं कुछ यूँ हुआ हमको,

ज़मीं नम हो गयी है, आज इतना रो चुके हैं हम।



उतारे कोई अब तो, इन रिवाजों के सलीबों को,

छिले कंधे लिए, सदियों से इनको ढो चुके हैं हम।



मेरे सपने अभी तक डर रहे हैं, सुर्ख रंगों से,

हथेली से लहू यूँ तो, कभी का धो चुके हैं हम।



बची है अब कहाँ, मुँह में जुबाँ औ ताब आँखों में,

बहुत पाने की चाहत में,…

Continue

Posted on February 3, 2014 at 12:30pm — 7 Comments

एक मार्केटिंग मैनेज़र की आत्मव्यथा

मैं सपने बेचता हूँ।

आज के, कल के,

और कभी कभी तो बरसों बाद के भी।



इन सपनों की ज़रुरत नहीं तुम्हें।

इनका अहसास मैंने दिलाया है,

तुम्हारे जेहन में घुसकर...

तुम्हारे डर को कुरेदकर।



मैं और मुझ जैसे सैकड़ों लोग,

झांकते हैं,

तुम्हारे गुसलखानों में,

तुम्हारी रसोई में,

तुम्हारे ख्वाबगाहों में।



मुझे पता है,

कितनी दफा ब्रश करते हो तुम,

कैसे रोता है तुम्हारा बच्चा गीली नैपी में, और

क्यूँ तुम्हारे चेहरे की चमक खो…

Continue

Posted on August 4, 2013 at 7:30am — 11 Comments

किरदार

किसी भूली कहानी का, कोई किरदार दिखता है,

मेरा क़स्बा मुझे , अब सिर्फ इक बाज़ार दिखता है।



कि जैसे सर के बदले, आईनें हों सबके कन्धों पर,

मुझे हर शख्स मुझसा ही, यहाँ लाचार दिखता है।



यही इक मर्ज़ है उसका ,दवा भी बस यही उसकी,

शहर, चाहत में पैसे की, बहुत बीमार दिखता है।



बचेगी किस तरह मुझमें, किसी मंजिल की अब हसरत,

समंदर के सफ़र में, बस मुझे मंझधार दिखता है।



न कोई रब्त है, ना गम, न कुछ बाकी तमन्नाएँ,

ये शायर शय से सारी, इन दिनों…

Continue

Posted on July 8, 2013 at 4:30pm — 11 Comments

ग़ज़ल - कुछ तेरे होने तलक थी, कुछ तुम्हारे बाद है

कुछ मुझी में प्यार मेरा, इस कदर आबाद है,

कैद में दुनिया है मेरी, दिल मेरा आज़ाद है।



पाँव थमते ही नहीं, अब मंजिलों पर भी मेरे,

ये मेरी आवारगी, शायद मेरी हमजाद है।



कुछ दिनों से चाय की प्याली नहीं खनकी यहाँ,

बिन तेरे बिखरी रसोई, क्या कहाँ, कब याद है।



है जवानी भूलती इस बात को ना जाने क्यूँ,

इक बुढ़ापे ने ही इस घर की रखी बुनियाद है।



दिल को मेरे है शिकायत जाने…
Continue

Posted on November 8, 2012 at 8:39pm — 7 Comments

Comment Wall (1 comment)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 7:13pm on January 16, 2012, Admin said…

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani commented on मिथिलेश वामनकर's blog post बालगीत : मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर बाल गीत। रिबन के विभिन्न रंगो के चमत्कार आपने बता दिए। बहुत खूब आदरणीय।"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, क्या ही खूब ग़ज़ल कही हैं। एक से बढ़कर एक अशआर हुए हैं। इस…"
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"मेरे कहे को मान देने के लिए आपका आभार।"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आशा है अवश्य ही शीर्षक पर विचार करेंगे आदरणीय उस्मानी जी।"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"गुत्थी आदरणीय मनन जी ही खोल पाएंगे।"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"धन्यवाद आदरणीय उस्मानी जी, अवश्य प्रयास करूंगा।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"नमस्कार। प्रदत्त विषय पर एक महत्वपूर्ण समसामयिक आम अनुभव को बढ़िया लघुकथा के माध्यम से साझा करने…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"आदरणीया प्रतिभा जी आपने रचना के मूल भाव को खूब पकड़ा है। हार्दिक बधाई। फिर भी आदरणीय मनन जी से…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)
"घर-आंगन रमा की यादें एक बार फिर जाग गई। कल राहुल का टिफिन बनाकर उसे कॉलेज के लिए भेजते हुए रमा को…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service