भले ही जहाँ ने ये माना नहीं है।
कोई पर मेरे यार जैसा नहीं है।
बता तो दिया है ज़माने को लेकिन,
असर क्यों मुहब्बत का दिखता नहीं है।
यूँ शर्म ओ हया की न बातें करो तुम,
अगर इन निगाहों पे पर्दा नहीं है।
नुमाइश की आदत तुम्हें होगी शायद,
मुझे करना आता दिखावा नहीं है।
कहानी में कुछ तो नयापन भी लाओ
पुराना सा किस्सा सुनाना नहीं है।
अगर खोने पाने की चिंता न हो तो,
किसी बात का फ़र्क पड़ता नहीं है।
ख़ुदा ने हमें ख़ुद की ख़ुशी से नवाज़ा
हुजूर आपने क्यों ये माना नहीं है।
हमेशा अलग था "कमल" तू जहाँ से,
मगर क्यों समझ तू ये पाया नहीं है।
अप्रकाशित और मौलिक
I need to have a word privately, please get back to me on ( mrs.ericaw1@gmail.com) Thanks.
ख़ुश रहो ।
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