बह्र:- 1222-1221-22
अरे ! हम कोई लेखक थोड़ी हैं।।
समय हो पास , वो मुमफली हैं।।
कहाँ कहना हमें मंच-कविता।
बहल बस दिल ही जाएं ख़ुशी हैं।।
बड़े ओहदे ,रंगीं रात ,ना ना।
गरीबां का निवाला, सही हैं।।
मुहब्बत में हमारी भी दोस्त।
नशा भी वो ,वही मयकशी हैं।।
कोई रूठे तो रूठे मेरा क्या।
मेरी दौलत ओ शोहरत नही हैं।।
आमोद बिंदौरी /मौलिक अप्रकाशित
Added by amod shrivastav (bindouri) on January 24, 2018 at 8:42pm — 2 Comments
वो कहते हैं मेरी पहचान को मिटटी में मिला डाला
बह्र-1222-1222-1222-1222
वो कहतें हैं मेरी पहचान को मिटटी में मिला डाला।।
मैं कहता हूँ पुरानी थी नया रिश्ता बना डाला।।
न भूला कर की रिश्ते में मैं तेरा बाप हूँ बेटा।
कहाँ भूला यही तो सोंच उल्फत को भुना डाला।।
मैं कहता हूँ मेरी पहचान इक दिन आप की होगी।
वो बोले तुझ से कितने बीज बो कर के उगा डाला ।।
मुझे अब तक यकीं होता न उल्फत की मिसालों पर।
मुहब्बत नाम है किसका उसे किसका बना…
Added by amod shrivastav (bindouri) on January 19, 2018 at 7:29pm — 2 Comments
बह्र- 122-122-122-122
मुझे है भला क्या कमी जिंदगी से।।
है रिश्ता मेरा तीरगी ,रौशनी से।।
मुझे बज्म इतना न पहचां रही है।
है पहचान मेरी-तेरी माशुकी से।।
कई बार गुजरे हैं तेरे शह्र से।
तेरी आशिक़ी से तेरी बेरुख़ी से।।
मुहब्बत के कुछ ऐसे क़िस्से सुने हैं।
की डर लगता है आज की आशिक़ी से।।
दिये की जरुरत किसे अब नही है?
बता किसकी कब है बनी तीरगी से??
पता मुझको उस शख्स का भी जरा…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on January 19, 2018 at 5:24pm — 5 Comments
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