एक थैली बूंदी...
- शमशाद इलाही अंसारी "शम्स"
पता नहीं मुझे आज
एक थैली बूंदी की याद
इतनी क्यों आ रही है..?
आज के दिन..
जब स्कूल में
बंटा करती थी..
तमाम उबाऊ क्रिया कलापों
और न्यूनतम स्तर के
पाखण्डों के बाद
बस प्रतीक्षा रहती थी
कब मिलेंगी
वो, गर्म गर्म बूंदियों की
रस भरी थैलियां
जो, न जाने कब और कैसे
जुड़ गयी थी
गणतंत्र दिवस…
ContinueAdded by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on January 26, 2011 at 7:09pm — 9 Comments
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