बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आखिर
२१२/२१२/२१२/२
रहनुमाई की बरसात है क्या।
फिर चुनाओं के हालात हैं क्या।
झुठ भी बोलो अगर तो सही है,
ये सियासत के शहरात है क्या।
शह्र मे आग है फिर पुरानी ,
दंगो से फिर ये हालात है क्या।
चीखें फिर से सुनाई दे कोई,
बहनों के लूटे अस्मात है क्या।
लोग कितने मजे से यहाँ हैं,
शह्र के ये हवालात हैं क्या।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hemant kumar on February 26, 2017 at 8:00pm — 6 Comments
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