दशहरा मनाते हर साल हम,
पुतला जलाते सदियों बीतीं
कहाँ मरा है रावण अब भी ?
कहा है सुरक्षित अब भी सीता ?.
.
रंग गुलाल उड़ते थे कभी
आती थी जब जब भी होली
भर रहा है बच्चा वच्चा
बम बारूद से अपनी झोली
.
खुशियों के दीप जलते थे
जगमग करती थी दिवाली
लपटें उठती हैं शोलों से
बस्ती जलती है अब खली
.
एकता का पाठ भूले हम
भूल गए मानवता के नारे
काम, क्रोध, लोभ की आग में
सुख शांति सब जल…
Added by praveen singh "sagar" on February 12, 2012 at 10:00am — 1 Comment
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