वैलेंटाइन फ्लू (व्यंग)
त्राहिमाम कर रही दिल्ली, फ़ैल रहा स्वाईंन फ्लू,
दूजे सर चढ़ के बोल रहा सबके वैलेंटाइन फ्लू.
कही मरीजों की है, कतारें लम्बी अस्पतालों में,
और हम हैं की खोये हैं प्रेमिका के ख्यालों में.
कही परिजन चीत्कार कर रहे छाती पीटकर,
प्रेम पत्र लिख रहे हम उसपर इतर छिटकर.
पड़ोस में एक बीमार पड़े ,मदद को हैं बुलाते,
पर गुलाब लिए हाथ में हम गीत हैं गुनगुनाते.
क्यों औरों का दुःख अपनाऊँ ,क्यों सेवा धर्म करूँ,
मचले जिससे सुदर बाला ,मैं तो ऐसा कर्म करूँ.
क्यों समझू की परमार्थ में ही छुपा होता प्यार,
तन जिसमे लुभाते हों , मैं करूँ वही व्यापार.
स्वाईंन फ्लू से निपटने का , क्यों करूँ खोज या आविष्कार
कही बेहतर है करूँ , किसी लड़की से आँखे चार
प्रवीण "सागर"
09311788846
Comment
bahut khoob acchi racna hai
PRAVEEN JI SUNDER RACHNA BADHAI
प्रवीण सागर जी वेलेंटाइन फ्लू आपके सर चढ़ कर बोल रहा है।मनोरंजक अच्छी रचना।
अच्छा है और आमयिक भी हार्दिक बधाई इस व्यंग्य और त्यौहार पर भी !!
आज के अचेत बबुआनों को बासंती झकझोर
एक सार्थक सामयिक कटाक्ष बहुत खूब |
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