मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया
था रब्त मुझसे भी कभी वो मान तो गया
आवारगी वही रही है आशिकी वही
दीवानेपन की इन्तहा को जान तो गया
दिल थे जिगर भी थे कभी वो और ही थे दिन
अब तो मशीनें रह गई इन्सान तो गया
कट तो रहा है वक्त यूं तेरे बगैर भी
जीने का जिंदगी से वो सामान तो गया
मज़हब भी चल रहे हं सियासत की राह पर
ईमान से पहले सा वो ईमान तो गया
मौलिक व अप्रकाशित
Added by charanjit chandwal `chandan' on March 27, 2015 at 7:00am — 1 Comment
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