Added by neeraj tripathi on March 26, 2011 at 3:25pm — 15 Comments
Added by neeraj tripathi on March 11, 2011 at 11:30am — 3 Comments
Added by neeraj tripathi on March 7, 2011 at 5:48pm — 12 Comments
Added by neeraj tripathi on March 4, 2011 at 2:25pm — 4 Comments
वक़्त की अठखेलियों से फिर जनाज़े हाय निकले;
एक पिंजरे में कुरेदा तो अनोखे भाव निकले;
कितने अरमान गूंजते थे जुगनुओं से रास्तों में;
सुर्ख थे नींदों में सारे जब जगा तो स्याह निकले.
जब जलज की पंखुड़ी पर अश्रु थामे तुम खड़े थे;
दुःख तो थोड़े थे हमारे किन्तु तुम कितने बड़े थे;
नीर था चारों तरफ फिर नाव क्यों चलती नहीं थी;
हम किनारे पर डुबे थे तुम तो दरिया पार निकले.
सोचता हूँ इस…
Added by neeraj tripathi on March 2, 2011 at 11:12am — 5 Comments
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