मौसम नेअभी जलवे दिखलाने हज़ारों हैं
साहिल से अभी तूफां टकराने हज़ारों हैं
इस उम्र में भी मरता है तुमपे कोई मुझसा
कहते थे कभी हमसे दीवाने हज़ारों हैं
मैंने हैं सजा रक्खे सब दिल में करीने से
जो ग़म के दिये तुमने नज़राने हज़ारों हैं
इस शहर मे भी तेरे हमदर्द तो हैं अपने
अपने तो हैं कम लेकिन बेगाने हज़ारों हैं
कितने हैं…
Added by charanjit chandwal `chandan' on April 10, 2015 at 8:30am — 1 Comment
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