नेतागिरी का कीड़ा - व्यंग्य
इस बार चुनाव लड़ने की
हमने भी ठानी है,
हमारे अंदर नेतागिरी का कीड़ा है
यह बात हमने अभी…
ContinueAdded by Usha Taneja on April 25, 2013 at 6:30pm — 22 Comments
मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?
(तस्वीर-गूगल इमेजिस से साभार)
मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?…
ContinueAdded by Usha Taneja on April 23, 2013 at 5:30pm — 9 Comments
प्रेम के मोती
नमवायु के शुष्क, जमे कण
धरती की गर्माहट भरी
सतह पर
हो जाते हैं जब इकट्ठे
तो बन जाते हैं कोहरा |
फिर यही कोहरा
अस्त-व्यस्त कर देता है
जन जीवन को ,
धीमा कर देता है
जिन्दगी की रफ़्तार को,
कारण बनता है
कई चिरागों के बुझने का,
साक्षी बनता है
हृदय स्पर्शी चीत्कारों का|
वापिस भी मोड़ देता है
आगे बढे हुए
कई क़दमों को,
धुंधला कर…
ContinueAdded by Usha Taneja on April 21, 2013 at 3:36pm — 18 Comments
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