मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?
(तस्वीर-गूगल इमेजिस से साभार)
मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?
एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!
चीर हरण के समय, तूने द्रौपदी की लाज बचाई
इन बच्चियों की चीख, फिर क्यों न दी सुनाई ?
इंसान पतन की ओर, पर तू क्यों पथरा रहा है
एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!
धर्म की हानि होने पर, अवतार लेने की कसम
क्या भूल गया भारत की, पाप-मुक्ति की रसम
तेरी इस धरा पर अधर्म, का चरम पार हो रहा है
एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!
बस! अब और नहीं, ऐसा कुछ भी सहा जाता
राधा-मीरा न सही, गोपियों से भी तो था नाता
उसी नाते की लाज रखने में, क्यों देर हो रहा है
एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!
बांसुरी की तान में यूँ, तुम सुध बुध भूलो मत
खोखली जमीन पर उगे, कदम्ब पर झूलो मत
उठाओ चक्र और दिखादो, पाप नाश हो रहा है
एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!
मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?
एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!
मौलिक व अप्रकाशित
-उषा तनेजा
Comment
बहुत सुन्दर और सामयिक रचना की लिए हार्दिक बधाई मैडम उषा तनेजा जी
हनुमान जयंती पर हार्दिक शुभकामनाए
आदरणीय Ashok Kumar Raktale जी, आपके विचारों की अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार!
आदरणीय मैडम कुंती मुकर्जी जी,
रचना पढने व समझने के लिए धन्यवाद!
सादर आभार
राम शिरोमणि पाठक जी,
रचना को सुन्दर कहकर उत्साह बढ़ने के लिए शुक्रिया!
सादर
आदरणीय केवल प्रसाद जी,
भावुकता को समझने के लिए धन्यवाद.
धर्म की हानि होने पर, अवतार लेने की कसम
क्या भूल गया भारत की, पाप-मुक्ति की रसम
बहुत खूब! हम अपने दायित्वों को याद रखें ना रखें इश्वर को तो याद रखना ही चाहिए. वाह! सुन्दर रचना. बहुत बहुत बधाई आदरणीया उषा तनेजा जी.सादर.
बांसुरी की तान में यूँ, तुम सुध बुध भूलो मत
खोखली जमीन पर उगे, कदम्ब पर झूलो मत
उठाओ चक्र और दिखादो, पाप नाश हो रहा है
एकबार आके देख तो सही, यहाँ क्या हो रहा है!..........उषा तनेजा जी आपके मोहना कैसे इस धरती पर आऐगे.....उसके लिये जमीन ही
कहाँ है ? और...तो और वह हो कलयुगी कंस मामा के जेल में बंध है. कहने और समझने की बातें बहुत है .सादर कुंती .
सुन्दर रचना। बधाई स्वीकारे।
आ0 तनेजा जी, अतिभावुक सुन्दर रचना। बधाई स्वीकारे। सादर,
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