माँ
Added by Usha Taneja on May 7, 2013 at 8:30pm — 14 Comments
वाह रे खुदा!
हैरान हूँ तेरी खुदाई देखकर;
तेरी मेरी भावना से
मानव की पाटी खाई देखकर|
ना उसे मिला कुछ
ना ही कुछ इसे मिला;
फिर क्या बकवास नहीं
दुश्मनी का ऐसा सिला?
चिराग जला करे घर रोशन
अपने घर की मुंडेरों से;
तो क्या खता, गर रहबर कोई
बचाए खुद को ठोकरों से?
पर नहीं, बिलकुल नहीं
मानव को यह सुहाता नहीं;
अपना घर रोशन भले ना हो
दूसरे को रास्ता दिखाना भाता…
ContinueAdded by Usha Taneja on May 4, 2013 at 5:50pm — 13 Comments
नेतागिरी का कीड़ा - व्यंग्य
इस बार चुनाव लड़ने की
हमने भी ठानी है,
हमारे अंदर नेतागिरी का कीड़ा है
यह बात हमने अभी…
ContinueAdded by Usha Taneja on April 25, 2013 at 6:30pm — 22 Comments
मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?
(तस्वीर-गूगल इमेजिस से साभार)
मोहना ओ मेरे मनमोहना, तू कहाँ सो रहा है?…
ContinueAdded by Usha Taneja on April 23, 2013 at 5:30pm — 9 Comments
प्रेम के मोती
नमवायु के शुष्क, जमे कण
धरती की गर्माहट भरी
सतह पर
हो जाते हैं जब इकट्ठे
तो बन जाते हैं कोहरा |
फिर यही कोहरा
अस्त-व्यस्त कर देता है
जन जीवन को ,
धीमा कर देता है
जिन्दगी की रफ़्तार को,
कारण बनता है
कई चिरागों के बुझने का,
साक्षी बनता है
हृदय स्पर्शी चीत्कारों का|
वापिस भी मोड़ देता है
आगे बढे हुए
कई क़दमों को,
धुंधला कर…
ContinueAdded by Usha Taneja on April 21, 2013 at 3:36pm — 18 Comments
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