प्रेम के मोती
नमवायु के शुष्क, जमे कण
धरती की गर्माहट भरी
सतह पर
हो जाते हैं जब इकट्ठे
तो बन जाते हैं कोहरा |
फिर यही कोहरा
अस्त-व्यस्त कर देता है
जन जीवन को ,
धीमा कर देता है
जिन्दगी की रफ़्तार को,
कारण बनता है
कई चिरागों के बुझने का,
साक्षी बनता है
हृदय स्पर्शी चीत्कारों का|
वापिस भी मोड़ देता है
आगे बढे हुए
कई क़दमों को,
धुंधला कर देता है
अच्छी भली दृष्टि को|
लेकिन जब यही धुंधलका
पवन की थपथपाइयों से,
सूर्य की हल्की तपिश से
हो जाता है छूमंतर|
तब बढ़ने लगती है रफ़्तार,
लौट आता है जीवन,
फैलने लगती हैं मुस्कराहटें,
बढ़ने लगते हैं कदम,
दृष्टिगोचर होती है स्पष्टता|
क्योंकि
प्रकृति लेती है परीक्षा मानव की
और देती है शिक्षा
धैर्यवान बनने की|
आपसी प्रेम और सौहार्द की गर्माहट
पिघला देती है कोहरे को
जो छाया है मानव मानव के बीच,
कर देती है परिवर्तित
प्रेम के मोतियों में,
ओस कणों से सींच|
पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
ram shiromani pathak जी, उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
आदरणीय Dr.Prachi Singh ji, मैं बहुत धन्य हुई आपकी प्रतिक्रिया जानकर. शुभकामनाओं के लिए हर्दिक आभार.
आदरणीया ऊषा तनेजा जी,बहुत सुन्दर प्रस्तुति।बधाई स्वीकार करें।
आदरणीया ऊषा तनेजा जी,
संवादहीनता और गलतफहमियों के कुहासों की दीवारें सौहार्द की गरमाईश से ही टूटती हैं..
उत्कृष्ट भावों की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
आपसी प्रेम और सौहार्द की गर्माहट
पिघला देती है कोहरे को
जो छाया है मानव मानव के बीच,.....बहुत सुन्दर
शुभकामनाएं
Ashok Kumar Raktale जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद.
वाह! कोहरे की दीवारें और फिर ओस के मोती. बहुत सुन्दर भाव प्रस्तुत करती रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया उषा तनेजा जी.
आ0 तनेजा जी, सादर प्रणाम! बहुत सुन्दर प्रस्तुति। सादर बधाई स्वीकार करें।
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