2122, 212, 2122, 212
उससे मुझको सच मे कोई शिकायत भी नही,
हाँ मगर दिल से मिलूँ अब ये चाहत भी नही।
इस बुरुत पर ताव देने का मतलब क्या हुआ,
गर बचाई जा सके खुद की इज्जत भी नही।
अब अँधेरा है तो इसका गिला भी क्या करें,
ठीक तो अब रौशनी की तबीअत भी नही।
आती हैं आकर चली जाती हैं यूँ ही मगर,
इन घटाओं मे कोई अब इक़ामत भी नही।
जुल्म सहने का हुआ ये भी इक अन्जाम है,
अब नजर आँखों में आती बगावत भी नही।
मौलिक व…
Added by Hemant kumar on April 20, 2017 at 11:00am — 16 Comments
२१२२/१२१२/२२
हमने अपने ही पाँव काटे हैं,
इस सड़क पर के छाँव काटे हैं।
जो परींदा मजे से रहता था,
उनके तो सारे ठाँव काटे हैं।
दौड़ना चाहती है हर बेवा,
पर ये दुनिया ने पाँव काटे हैं।
वार जिसने भी करना चाहा तो,
उसके तो सारे दाँव काटे हैं।
जानकर जा रहे शहर(१२) तुम भी,
इस शहर(१२)ने ही गाँव काटे हैं।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Hemant kumar on April 6, 2017 at 9:00pm — 12 Comments
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