दिल में चंद पल तन्मय रब रीझाना भी होता था।
हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था।।
ि
तश्नगी से सहरा में तूं पी करते मर जाना भी होता था ।
हैरतअंगेज गजाला-गजाली सा याराना भी होता था ।।
वादाफर्मा को वादा निभाना भी होता था ।
दिले-नाशाद को जाके मनाना भी होता था ।।
आजकल गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं लोग ।
पहले अपना मजहबीं इक बाना भी होता था।।
अब तो अजीजों का हमें सही पत्ता नहीं मिलता।
किसी जमाने में दुश्मन का भी ठिकाना भी होता था ।।
अब न…
ContinueAdded by nemichandpuniyachandan on April 23, 2011 at 3:30pm — No Comments
गजल-खुदी को खुदी से छुपाते रहें हैं हम ।
गैरो को मोहरा बनाते रहें हैं हम।।
भ्रष्टाचार को सबने अपना लिया हैं।
शिष्टता की बातें बनाते रहें हैं हम।।
रोशनी से चैंधिया जाती है आंखें ।
अंधेरे में खुशियां मनाते रहें हैं हम।।
जेब कतरों का पेट नहीं भरता।
मेहनत की अपनी खिलाते रहें हैं हम।।
लाखों भूखे पेट सोते हैं यहां।
बज्मों में रातें बिताते रहें हैं हम।।
अन्नाजी आपका बहुत आभार ।
अब तक सूखी खाते रहें हैं हम।।
दोस्तों नेकी कुछ करलो अभी…
ContinueAdded by nemichandpuniyachandan on April 19, 2011 at 10:30am — 1 Comment
गजल
दौरे-जहाँ में बन गया कुफ्तार आदमी।
सरे-बाजार में बिकने को हैं तैयार आदमी।।
धर्म-औ-ईमाँ को जो बेच के खा गये।
मौजूद है जहाँ में ऐसे कुफ्फार आदमी।।
कातिल दिन-दहाडे जुल्मो-सितम ढा रहे हैं।
वक्त के हाथों हैं बेबस-औ-लाचार आदमी।।
इसे दुनियां का आंठवा अजूबा ही समझना।
दर्जा-ए-जानवर में हो गया शुमार आदमी।।
कानून-औ-कायदो को करके दरकिनार।
बेखौफ कर रहा आदमी का शिकार आदमी।।
नमकपाश तो बेशुमार मिल जायेंगे मगर।
बडी मुश्किल से…
Added by nemichandpuniyachandan on April 17, 2011 at 9:30am — 1 Comment
दुनियां के सभी रिश्तों में प्रमुख रिश्ता हैं माँ।
सचमुच में हर प्राणी के लिए फरिश्ता हैं माँ।।
घने कोहरे में गर मंजिल नजर न आयें।
बंद हो सब रास्ते तो इक रास्ता हैं माँ।।
दुनियां के इस खौफनाक बियाबां में दोस्तों।
वहशियों से काबिले-हिफाजत पिता हैं माँ।
सगे-संबंधी मित्र-बंधु सभी सुख के साथी।
लेकिन दु़ख में साथ निभाने वाली सहभागिता हैं…
Added by nemichandpuniyachandan on April 11, 2011 at 10:00am — 3 Comments
हर लम्हें में निहाँ हैं अक्स जिंदगी का।
ढूंढते रह जाओगे नक्श जिंदगी का ।।
रुठों को मनाने में लग जाते हैं जमाने।
ता-उम्र चलता रहता हैं रक्स जिंदगी का।।
रंजो-गम में जो साथ न छोडे।
सबसे बेहतर है वो शख्स जिंदगी का।।
राहें-मंजिल में जो कदम न लडखडाए।
हासिल कर ही लेते हैं वो लक्ष जिंदगी का।।
बनी पे लाखों निसार हो जाते है चंदन।
कोई नहीं होता बरअक्स जिंदगी का।।
नेमीचन्द पूनिया चंदन े
Added by nemichandpuniyachandan on April 10, 2011 at 12:00pm — 1 Comment
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