अश्कों से चश्में-तर कर गया कोई।
वीरान सारा शहर कर गया कोई।।
सारा जहाँ मुसाफिर है तो फिर क्या मलाल।
गर किनारा बीच सफर कर गया कोई।।
नावाकिफ थे जो राहे-खुलूस से।
उन्हें इल्म पेशे-नजर कर गया कोई।।
जिनकी जुबाँ से नफरत की बू आती थी।
उन्हें उलफत से मुअतर कर गया कोई।।
जिंदगी का सफर काटे नहीं कटता चंदन।
तन्हा जिसे हमसफर कर गया कोई।।
नेमीचंद पूनिया चंदन
Comment
अच्छी कहन की ग़ज़ल के लिये दिली दाद ..
मतले से जो कुछ तारी हुआ है इसके लिये अल्फ़ाज़ नहीं हैं, मु. नेमीचंदजी.
क्या कहा जाय कि किसी के लिये किसी शहर का वीरान नज़र आना क्या होता है? मानो, भरे-पूरे किसी बाग़ में किन्हीं ठहरी हुयी आँखों का हरसूँ बेनूरी देखना.
सारा जहाँ मुसाफिर है तो फिर क्या मलाल।
गर किनारा बीच सफर कर गया कोई।।
कुछ मिल गये तो हो गये घड़ी भर को हमसफ़र.. क्या मलाल फिर, किसी से क्या शिकवा कोई..
जिनकी जुबाँ से नफरत की बू आती थी।
उन्हें उलफत से मुअतर कर गया कोई।।
उस फ़रिश्ते के लिये दिल से दुआ आती है. बहुत खूब. .. बहुत खूब.
जिंदगी का सफर काटे नहीं कटता चंदन।
तन्हा जिसे हमसफर कर गया कोई।।
इस मक्ते पर बेहतर कुछ न कहें हम. ..
हरपल कभी था रोज़ा-रोज़ा..!! .. आज रोज़ का रोज़ा, रोज़ा, रोज़ा. ..
नेमीचंद साहब, दिल से आपने जो कुछ कहा है.. इस कहन से पहले आपने कितना सहा है...
सादर
अश्कों से चश्में-तर कर गया कोई।
वीरान सारा शहर कर गया कोई।।
वाह वाह पुनिया साहिब, बहुत ही खुबसूरत मतला कहा है आपने, कितना अजीब है ना किसी एक के ना रहने से पूरा शहर ही वीराना लगता है |
सारा जहाँ मुसाफिर है तो फिर क्या मलाल।
गर किनारा बीच सफर कर गया कोई।।
सुन्दर शे'र , उम्द्दा कहन, सच कहा आपने, सभी तो मुसाफिर ही है यहाँ |
नावाकिफ थे जो राहे-खुलूस से।
उन्हें इल्म पेशे-नजर कर गया कोई।।
वाह वाह, बेहतरीन शे'र |
जिनकी जुबाँ से नफरत की बू आती थी।
उन्हें उलफत से मुअतर कर गया कोई।।
आय हाय, क्या बात कह गए जनाब, इस ग़ज़ल की सबसे खुबसूरत शे'र , नफरत करने वालों के दिलों में प्यार भर दूँ |
जिंदगी का सफर काटे नहीं कटता चंदन।
तन्हा जिसे हमसफर कर गया कोई।।
बेहतरीन मक्ता से ग़ज़ल को समाप्त किया आपने, पुरकसर ग़ज़ल हेतु बधाई स्वीकार करे जनाब |
kamaal ki ghazal,
aur ye she'r bahut achchha hai ki
जिनकी जुबाँ से नफरत की बू आती थी।
उन्हें उलफत से मुअतर कर गया कोई।।
bahut bahut badhai.
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