Added by nemichandpuniyachandan on September 28, 2011 at 11:08pm — 1 Comment
अश्कों से चश्में-तर कर गया कोई।
वीरान सारा शहर कर गया कोई।।
सारा जहाँ मुसाफिर है तो फिर क्या मलाल।
गर किनारा बीच सफर कर गया कोई।।
नावाकिफ थे जो राहे-खुलूस से।
उन्हें इल्म पेशे-नजर कर गया कोई।।
जिनकी जुबाँ से नफरत की बू आती थी।
उन्हें उलफत से मुअतर कर गया कोई।।
जिंदगी का सफर काटे नहीं कटता चंदन।
तन्हा जिसे हमसफर कर गया कोई।।
नेमीचंद पूनिया चंदन
Added by nemichandpuniyachandan on August 1, 2011 at 5:00pm — 3 Comments
गजल-
सोच समझकर कदम उठाना।
कहीं ऐसा न हो पडे पछताना।।
यह दुनियां इतनी गोल है दोस्तों।
कोई न यहां अटल ठहराना।।
जिसने गम को खा लिया।
उसे क्या खाना औ खिलाना।।
जिनको कोई समझ नहीं हैं।
मुश्किल हैं उनको समझाना।।
हुक्म देना आसाँ होता हैं लेकिन।
मुश्किल हैं करना औ करवाना।।
अभी आज कल या बरसो बाद।
आखिर इक दिन सबको जाना।।
नसीब में लिखा ही मिलता हैं।
सबको यहां पे आबो-दाना।।
हम तो तेरे हो…
Added by nemichandpuniyachandan on June 4, 2011 at 12:30pm — No Comments
गजल
आंखों में उल्फत का अंजन लगाईए।
टूटते हुए रिश्तों पे बंधन लगाईए।।
गर जज्बातो में नफरत की बू आये तो।
ऐसे सवालातों पे मंजन लगाईए।।
जब कभी जुल्मो-सितम हद से गुजर जाये।
तब अम्न के लिये जानो-तन लगाईए।।
लेने के बदले कुछ देना भी सिखिये।
हर जगह मुफ्त का ना चंदन लगाईए।।
जब रंजों-गम से दिल चंदन बेकरार हो जाये।
तब अंतस में धुन अलख निरंजन लगाईए।।
Added by nemichandpuniyachandan on June 2, 2011 at 12:00pm — 3 Comments
गजल
मुफलिसी बेबाक हो गई।
भूख ही खुराक हो गई।।
जिसने किया खुदी को बुलंद
जहाँ में उसकी धाक हो गई।।
जो पल में छीन लेते थे जिंदगी।
वो हस्तियां भीं खाक हो गई।।
किसी को गरज नहीं यहां जहाँ की।
सबको अपनी प्यारी नाक हो गई।।
जिसने इंकलाब का बिगुल बजाया।
उसकी बात "चंदन" मजाक हो गई।।
Added by nemichandpuniyachandan on May 15, 2011 at 5:30pm — 1 Comment
ऐ काश! मेरे भी माँ होती ।
जब-जब मेरी अखियाँ रोती ।
लापरवाहियां दुख देती।
सिर पे मेरे हाथ फिरोती।
ऐ काश मेरे भी माँ होती।
ममतामयी जवानी खोती।
सीने पर ज्यूं चले करोती।
अंखियां बरसे जैसे…
Added by nemichandpuniyachandan on May 8, 2011 at 11:30pm — 5 Comments
दिल में चंद पल तन्मय रब रीझाना भी होता था।
हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था।।
ि
तश्नगी से सहरा में तूं पी करते मर जाना भी होता था ।
हैरतअंगेज गजाला-गजाली सा याराना भी होता था ।।
वादाफर्मा को वादा निभाना भी होता था ।
दिले-नाशाद को जाके मनाना भी होता था ।।
आजकल गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं लोग ।
पहले अपना मजहबीं इक बाना भी होता था।।
अब तो अजीजों का हमें सही पत्ता नहीं मिलता।
किसी जमाने में दुश्मन का भी ठिकाना भी होता था ।।
अब न…
ContinueAdded by nemichandpuniyachandan on April 23, 2011 at 3:30pm — No Comments
गजल-खुदी को खुदी से छुपाते रहें हैं हम ।
गैरो को मोहरा बनाते रहें हैं हम।।
भ्रष्टाचार को सबने अपना लिया हैं।
शिष्टता की बातें बनाते रहें हैं हम।।
रोशनी से चैंधिया जाती है आंखें ।
अंधेरे में खुशियां मनाते रहें हैं हम।।
जेब कतरों का पेट नहीं भरता।
मेहनत की अपनी खिलाते रहें हैं हम।।
लाखों भूखे पेट सोते हैं यहां।
बज्मों में रातें बिताते रहें हैं हम।।
अन्नाजी आपका बहुत आभार ।
अब तक सूखी खाते रहें हैं हम।।
दोस्तों नेकी कुछ करलो अभी…
ContinueAdded by nemichandpuniyachandan on April 19, 2011 at 10:30am — 1 Comment
गजल
दौरे-जहाँ में बन गया कुफ्तार आदमी।
सरे-बाजार में बिकने को हैं तैयार आदमी।।
धर्म-औ-ईमाँ को जो बेच के खा गये।
मौजूद है जहाँ में ऐसे कुफ्फार आदमी।।
कातिल दिन-दहाडे जुल्मो-सितम ढा रहे हैं।
वक्त के हाथों हैं बेबस-औ-लाचार आदमी।।
इसे दुनियां का आंठवा अजूबा ही समझना।
दर्जा-ए-जानवर में हो गया शुमार आदमी।।
कानून-औ-कायदो को करके दरकिनार।
बेखौफ कर रहा आदमी का शिकार आदमी।।
नमकपाश तो बेशुमार मिल जायेंगे मगर।
बडी मुश्किल से…
Added by nemichandpuniyachandan on April 17, 2011 at 9:30am — 1 Comment
दुनियां के सभी रिश्तों में प्रमुख रिश्ता हैं माँ।
सचमुच में हर प्राणी के लिए फरिश्ता हैं माँ।।
घने कोहरे में गर मंजिल नजर न आयें।
बंद हो सब रास्ते तो इक रास्ता हैं माँ।।
दुनियां के इस खौफनाक बियाबां में दोस्तों।
वहशियों से काबिले-हिफाजत पिता हैं माँ।
सगे-संबंधी मित्र-बंधु सभी सुख के साथी।
लेकिन दु़ख में साथ निभाने वाली सहभागिता हैं…
Added by nemichandpuniyachandan on April 11, 2011 at 10:00am — 3 Comments
हर लम्हें में निहाँ हैं अक्स जिंदगी का।
ढूंढते रह जाओगे नक्श जिंदगी का ।।
रुठों को मनाने में लग जाते हैं जमाने।
ता-उम्र चलता रहता हैं रक्स जिंदगी का।।
रंजो-गम में जो साथ न छोडे।
सबसे बेहतर है वो शख्स जिंदगी का।।
राहें-मंजिल में जो कदम न लडखडाए।
हासिल कर ही लेते हैं वो लक्ष जिंदगी का।।
बनी पे लाखों निसार हो जाते है चंदन।
कोई नहीं होता बरअक्स जिंदगी का।।
नेमीचन्द पूनिया चंदन े
Added by nemichandpuniyachandan on April 10, 2011 at 12:00pm — 1 Comment
भ्रष्टाचार-
हाकिम से लेकर अर्दली तक नौेकर से लेेेकर व्यौपारी तक।।
भ्रष्टाचार फैला देश में।मेरे गाॅव से दिल्ली तक।।
गाय से लेकर हाथी तक।कुते चूहे से लेकर बिल्ली तक।।
पेशोपेश में हैं पशु-पक्षी।बाज से लेकर तित्ल्ली तक।।
भ्रष्टाचार फैला देश…
Added by nemichandpuniyachandan on March 27, 2011 at 8:30pm — 2 Comments
Added by nemichandpuniyachandan on March 23, 2011 at 1:30pm — 1 Comment
गजल
ईमानदार मैदाॅं में, बाजी मार जाते हैं।
बेईमानों के घोडे, आखिरी हार जाते हैं।।
परस्तिश करती है, उनकी सल्तनत दोस्तों।
वतन की राह में,जो जांॅ निसार जाते हैं।।
हथियारों पे कायम है, कायनात जिनकी।…
Added by nemichandpuniyachandan on March 13, 2011 at 7:26pm — 1 Comment
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