(122 122 122 122)
करोगे कहां तक सबब की वज़ाहत
अंधेरों की कब तक करोगे इबादत
यक़ीं रख के सर को झुकाते रहे हो
दिखाते रहे हो ये कैसी शराफ़त
नहीं ठीक है जो तुम्हारी नज़र में
उसी की ही करते रहे हो वकालत
नई प्रेम नदियां बहा दो जहां में
यहां पर दिखाओ ज़रा सी सख़ावत
भले ख्वाब हों पर हक़ीक़त बनेंगे
मिटेगी यहां नफरतों की रिवायत
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- नंद कुमार सनमुखानी
- मौलिक और अप्रकाशित
Added by Nand Kumar Sanmukhani on May 3, 2018 at 9:00pm — 13 Comments
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