2122-2122-2122-212
मतला:-
ख़ुश ही रहता हूँ शिकायत क्या करूँ क्या है अता।।
आदमी हूँ ख्वाहिशें होनी नहीं कम ऐ ख़ुदा।।
हुश्न-ए-मतला:-
तेरे ज़ानिब से मुझे जो भी मिला अच्छा लगा ।
मैं तो मुफ़लिस था मेरी हिम्मत कहाँ कुछ माँगता।।
मेरा दम घुटने लगा जब महफिलों की शान में ।
यार आया हूँ उठा कर दूर खुद का मकबरा।।
मेरी मैय्यत में गुलों की बारिशें अच्छी नहीं।
शाइरी के भेष में करने लगा था इल्तिज़ा।।
देख़ो उल्फ़त के…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on May 31, 2019 at 12:20pm — No Comments
बहर :- 22-22-22-22-22-2
तुम हो शातिर तुमको ऐसा लगता है ।।
मेरी ओर से भी दरवाजा लगता है।।
मैं करता तुमसे कैसे दिल की बातें।
तुमको मेरा प्रेम ही' सौदा लगता है।।
वो मंदिर में गिरजाघर में मस्जिद में।
मुझमें तुझमें पहरा जिसका लगता है।।
वो पत्थर ख़ुद को समझे क़िस्मत वाला।
जिसको छैनी और हथौड़ा लगता है ।।
आन पड़े जब मुश्किल घड़ियां जीवन में।
एक रु'पइया एक हजारा लगता है ।।
हिन्दू मुस्लिम भाई…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on May 24, 2019 at 5:46pm — No Comments
1211-22-1221-212
दरोज बुझाया जलाया गया मुझे।।
कुछ और नहीं बस सताया गया मुझे।।
यूँ पहली नजर की मुहब्बत ही नेक थी ।
गलत है क़े रस्ता दिखाया गया मुझे।।
मुँड़ेर से महताब जैसा दिखाई दूँ।
वही एक रोगन चढ़ाया गया मुझे।।
मुझे भी यही दौर आसान कह रहा ।
वो दौर बता जो बताया गया मुझे।।
गुलाब सी खुश्बू बिखेरुं कभी कहीं।
कलम से कलम कर लगाया गया मुझे।।
आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशित
Added by amod shrivastav (bindouri) on May 24, 2019 at 1:28pm — No Comments
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