जीवन तुझसे एक वर माँगू
पाप पुण्य से दूर
जीवन की समझ माँगू
एकाकी अगर सत्य हो तो
तथागत बनने का वर माँगू
आवेश ही एक मात्र मार्ग हो तो
दुर्योधन का आवेश पाऊँ
क्षमा ही ध्येय हो तो
युधिष्ठिर का मन पाऊँ
समर्पण ही अगर सत्य हो तो
समर्पण की धुरी पर जो कर्ण पिसा
मैं भी समर्पित हूँ
उपेक्षा अगर सत्य हो तो
एकलव्य सा ध्यान…
ContinueAdded by arunendra mishra on May 30, 2012 at 9:30pm — 18 Comments
प्रियतम जब से मैंने प्रेम का आवाहन किया
करुण वेदना , विरह अश्रु , और मौन ने मेरा श्रृंगार किया
कितनी संवेदना ,कितनी आह
कितने अश्रु , कितनी चाह
कितने आलाप , कितने गान
मिल कर भी
संतॄप्त न कर पाती
उर अरमनों में छिपे स्पंदन को,
प्रियतम जब से मैंने प्रेम का आवाहन किया
सावन रिक्त , शशि सुप्त
सूरज न उग्र , रौद्र नयन हैं रुष्ट
प्रियतम जब से मैंने प्रेम का आवाहन किया
करुण वेदना , विरह अश्रु , और मौन ने मेरा…
ContinueAdded by arunendra mishra on May 25, 2012 at 11:56pm — 9 Comments
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