हे मन कर कल्पना
बना फिर अल्पना
खोल कर द्वार
सोच के कर पुनः संरचना
हे मन कर कल्पना
क्यूँ मौन तू हो गया
किस भय से तू डर गया
खड़ा हो चल कदम बढ़ा
करनी है तुझे कर्म अर्चना
हे मन कर कल्पना
छोड़ उसे जो बीत गया
भूल उसे जो रीत गया
निश्चय कर दम भर ज़रा
सुना समय को अपनी गर्जना
हे मन कर कल्पना
पथ है खुला तू देख तो
नैनो को मीच खोल तो
ऊंचाई पर ही फल मीठा…
ContinueAdded by Priyanka singh on May 22, 2014 at 6:18pm — 16 Comments
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