आज मैंने छूट्टी दे दी है -
अनगिनत दुखों को, बेचैनियों को
ज़िंदगी के अभावों और अनुभवों को
सगे-संबंधी के रिश्तों की गठरी को
अपने नाम - शोहरत के बोज को भी
जगमगाहट भरी भौतिकता की लाईट बंद
अपने नियमों - आग्रहों से दु:खी होनेवाले को
अपने साथी-संगाथियों से हुई अनबन…
Added by Pankaj Trivedi on June 27, 2014 at 9:00pm — 10 Comments
प्रायश्चित करना चाहिए
गुरु द्रोण को...
जिन्होंने अपने ज्ञान को
सीमित रखा उन महाराजा के
वंशजों के लिए और
ज्ञान से वंचित रहने लगा
वो वनवासी !
जिसने सिर्फ मिट्टी के
गुरु को स्थापित किया
और धनुर्विद्या में
महारत हांसिल की |
* * *
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Pankaj Trivedi on June 27, 2014 at 9:00pm — 8 Comments
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