सब समझ पातेहों ऐसे इल्म क्यों होते नहीं
सबको रक्खें साथ ऐसे बज्म क्यों होते नहीं
सिर्फ़ खँजरही नहीं कुछ लब्जभी घायल करें
दर्दसे महरूम कोइ ज़ख़्म क्यों होते नहीं
हर अंधेरी रातका रोशन सवेरा तो सुना
बदनसीबीके ये दिन फिर ख़त्म क्यों होते नहीं
आमलोगों केलिये बनते हैं सब क़ानून क्यों
ख़ासलोगों केलिये कोई हुक्म क्यों होते नहीं
सब सवालोंके तुम्हारे पास हैं गर हल तो फिर
पूछनेके सिलसिले ये ख़त्म क्यों होते नहीं…
Added by Kishorekant on July 31, 2018 at 7:20pm — 2 Comments
सब समझ पातेहों ऐसे इल्म क्यों होते नहीं
सबको रक्खें साथ ऐसे बज्म क्यों होते नहीं
सिर्फ़ खँजरही नहीं कुछ लब्जभी घायल करें
दर्दसे महरूम कोइ ज़ख़्म क्यों होते नहीं
हर अंधेरी रातका रोशन सवेरा तो सुना
बदनसीबीके ये दिन फिर ख़त्म क्यों होते नहीं
आमलोगों केलिये बनते हैं सब क़ानून क्यों
ख़ासलोगों केलिये कोई हुक्म क्यों होते नहीं
सब सवालोंके तुम्हारे पास हैं गर हल तो फिर
पूछनेके सिलसिले ये ख़त्म क्यों होते…
Added by Kishorekant on July 31, 2018 at 7:00pm — 7 Comments
१२२२,१२२२,१२२२,१२२२
अता.........करदी
हमारेही मुक़द्दर में जुदाई क्यों अता करदी०
ज़रा इतना तो बतलाओ,कि ऐसी क्या खता करदी ।०
मेरी खामोशियोंको, नाम रुसवाई दिया तुमने०
कहाँ कुछ हम थे बोले, बात ऐसी, क्या, बता करदी । ०
कहाँ माँगी कहो जन्नत , ज़माने भर की दौलत भी०
मेरी तक़दीरसे, ख़ुशियाँ सभी क्यों लापता करदीं ।०
पढी बस इक ग़ज़ल हमने,कभी यारोंकी महेफिल में ०
तुम्हारा ज़िक्र क्या आया,खुदा या दासताँ करदी…
Added by Kishorekant on July 30, 2018 at 6:36pm — 15 Comments
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