सोचा था आईने की तरह
साफ़ रखूँगी अपना चेहरा
पर कुछ तो है जो छिपा जाती हूँ
यूँ भाव चेहरे के बदल लेती हूँ
कि कहीं प्रतीयमान न हो जाये|
बोलती थी कभी बेधड़क हो
कुछ तो है जो किसी कोने में
मौनव्रत रख बैठ जाती हूँ
कि कही कुछ प्रतीप न हो जाये|
आँखों में भी दिखता था कभी
दूसरे की गलत बातो का प्रतिकार
पर किसी का तो डर है जो
अब आँखों को झुका लेती हूँ…
Added by savitamishra on July 30, 2014 at 3:30pm — 20 Comments
भूख
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भूख हायकु
विचलित है मन
शब्द मनन|
पत्तल झूँठा
चाट भरता पेट
अमीर शेष|
झूठन चाट
शांत की उदराग्नि
कुत्तों के संग|
भृत्य लाड़ले ...सेवक
अवशेष भोजन
भूख मिटाते|
सगाई-शादी
क्यों भोजन…
Added by savitamishra on July 1, 2014 at 9:00pm — 6 Comments
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