For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आगे पीछे : लघुकथा


"कहाँ आगे-आगे बढ़े जा रहे हो जी', मैं पीछे रह जा रही हूँ |"
"तुम हमेशा ही तो पीछे थी"
"मैं आगे ही रही "
"और चाहूँ तो हमेशा आगे ही रहूँ, पर तुम्हारें अहम् को ठेस नहीं पहुँचाना चाहती हूँ समझे|"
"शादी वक्त जयमाल में पीछे ..."
"डाला जयमाल तो मैंने आगे"
"फेरे में तो पीछे रही"
"तीन में पीछे, चार में तो आगे रही न "
"गृह प्रवेश में तो पीछे"
"जनाब भूल रहे हैं, वहां भी मैं आगे थी "
इसी आगे पीछे को लेकर लड़ते -हँसते  पार्क से बाहर निकले और एक दूजे से नोंकझोक करते हुए ही बेफिक्र हो बाइक से  जा रहे थे| सुनसान रास्ते पर बदमाशों ने उनकी बाइक रोक तमंचा तान दिया - "निकालो सारे गहने" चीखा एक |
दुवेश शीला को पीछे कर,बदमाशों से भिड़ गया |
जैसे ही घोड़ा दबा, पत्नी उसकी बाहों में झूलती हुई मुस्करा कर बोली " लो जी यहाँ भी मैं आगे ..|"

सविता मिश्रा

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 912

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savitamishra on February 12, 2015 at 12:28pm

आभार आपका चाचाजी .सादर नमस्ते ..अपना आशीष यु ही बनाये रखे

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 11, 2015 at 1:38pm

आदरणीया सविता जी

अप्रत्याशित अंत i इसके लिए जो वातावरण आपने पहले तैयार किया उसके लिए बधाई i

Comment by savitamishra on February 8, 2015 at 10:17pm

गुमनाम भाई शुक्रिया आपका

Comment by savitamishra on February 8, 2015 at 10:17pm

शुक्रिया बागी भाई रास्ता दिखाने का और सौरभ भैया आपका भी यू ही मार्गदर्शन करते रहिये ....दरकार भी है हमे

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 8, 2015 at 7:11pm

वाह बहुत खूब काफी सुन्दर............


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 8, 2015 at 10:25am

///अब ठीक है ................////

अब बिल्कुल ठीक है जी, जो मैं कहना चाहता था आप तक बात पहुंची और उसी अनुसार आपने लघुकथा में आपेक्षित सुधार भी किया, सादर.

Comment by savitamishra on February 7, 2015 at 11:43pm
Comment by savitamishra just now
Delete Comment

आदरणीय सौरभ भैया आभार आपका तहेदिल से ..संसोधन कर तो दिए भैया पर शायद आप ध्यान ना दिए  ..सादर नमस्ते


"जनाब भूल रहे हैं, वहां भी मैं आगे थी "
इसी आगे पीछे को लेकर लड़ते -हँसते  पार्क से बाहर निकले और एक दूजे से नोंकझोक करते हुए ही बेफिक्र हो बाइक से  जा रहे थे| सुनसान रास्ते पर बदमाशों ने उनकी बाइक रोक तमंचा तान दिया - "निकालो सारे गहने" चीखा एक |

क्या सही है अब एडिट कर ले इसे


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 7, 2015 at 10:54pm

हल्के-फुल्के नोंक-झोंक वाले प्लाट पर आधारित इस लघुकथा का अंत अचानक ऐसा गहन है कि मन एकबारग़ी झन्ना जाता है. हँसते-मुस्कुराते पत्नी का मौत को एक तरह से गले लगाने को उद्यत हो जाना तनिक अटपटा सा लगा. पत्नी के प्रेम की तीव्रता को क्या पति समझ नहीं पाया था कि पत्नी को उस समय यह कह कर अहसास कराना पड़ा जब मौत आसन्न थी ? भले मौत आयी न हो ?
वैसे आपके प्रयास पर आपको बधाई, कि कथा बाँधती है. गनेश भाई के कहे पर मेरी भी सम्मति है.  
शुभेच्छाएँ

Comment by savitamishra on February 7, 2015 at 10:45pm

अब ठीक है ...

"कहाँ आगे-आगे बढ़े जा रहे हो जी', मैं पीछे रह जा रही हूँ |"
"तुम हमेशा ही तो पीछे थी"
"मैं आगे ही रही "
"और चाहूँ तो हमेशा आगे ही रहूँ, पर तुम्हारें अहम् को ठेस नहीं पहुँचाना चाहती हूँ समझे|"
"शादी वक्त जयमाल में पीछे ..."
"डाला जयमाल तो मैंने आगे"
"फेरे में तो पीछे रही"
"तीन में पीछे, चार में तो आगे रही न "
"गृह प्रवेश में तो पीछे"
"जनाब भूल रहे हैं, वहां भी मैं आगे थी "
इसी आगे पीछे को लेकर लड़ते -हँसते  पार्क से बाहर निकले और एक दूजे से नोंकझोक करते हुए ही बेफिक्री बाइक से  जा रहे थे| सुनसान रास्ते पर बदमाशों ने उनकी बाइक रोक तमंचा तान दिया - "निकालो सारे गहने" चीखा एक |
दुवेश शीला को पीछे कर,बदमाशों से भिड़ गया |
जैसे ही घोड़ा दबा, पत्नी उसकी बाहों में झूलती हुई मुस्करा कर बोली " लो जी यहाँ भी मैं आगे ..|"

Comment by savitamishra on February 7, 2015 at 10:40pm

बागी भाई दिल से शुक्रिया आपका ..प्रभाकर भैया ने कहा था जैसा हम समझ पाए थे कि लघुकथा में जरुरी नहीं है बताना नाम या स्थान बिना जरूरत ..अतः नहीं लिखे यदि तकनीकि खामी है और आपके बोलने के बाद हमे भी यही लग रहा की कुछ तो मेंशन होना था ...शुक्रिया आपका आपने  राय दी ...कोशिश करते है फिर
मार्गदर्शन का एक बार फिर से शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
22 hours ago
सतविन्द्र कुमार राणा posted a blog post

जमा है धुंध का बादल

  चला क्या आज दुनिया में बताने को वही आया जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आयाजरा सोचो कभी झगड़े भला…See More
22 hours ago
आशीष यादव posted a blog post

जाने तुमको क्या क्या कहता

तेरी बात अगर छिड़ जातीजाने तुमको क्या क्या कहतासूरज चंदा तारे उपवनझील समंदर दरिया कहताकहता तेरे…See More
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post एक बूँद
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
Jan 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service