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Savitamishra's Blog (28)

मूल्य -(लघुकथा)

छुट्टी की बड़ी समस्या है दीदी, पापा अस्पताल में नर्सो के सहारे हैं! भाई से फोनवार्ता होते ही सुमी तुरन्त अटैची तैयार कर बनारस से दिल्ली चल दी|

अस्पताल पहुँचते ही देखा कि पापा बेहोशी के हालत में बड़बड़ा रहें थे| उसने झट से उनका हाथ अपने हाथों में लेकर, अहसास दिला दिया कि कोई है, उनका अपना |

हाथ का स्पर्श पाकर जैसे उनके मृतप्राय शरीर में जान सी आ गयी हो |

वार्तालाप घर-परिवार से शुरू हो न जाने कब जीवन बिताने के मुद्दे पर आकर अटक गयी |

एक अनुभवी स्वर प्रश्न बन उभरा, तो दूसरा…

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Added by savitamishra on October 22, 2016 at 9:30am — 14 Comments

श्वास

"अरे मुंगेरी, खाना खाने भी चलेगा, या मगन रहेगा यहीं |" मुंगेरी को दीवार से बात करता हुआ देख चाचा ने कहा |

बहुमंजिला इमारत में प्लास्टर होने के साथ बिजली का भी काम चल रहा था | दोपहर में भोजन करने सब नीचे जाने लगे थे | मुंगेरी भी चाचा के साथ नीचे आकर जल्दी-जल्दी खाना ख़त्म करने लगा | तभी अचानक इमारत धू-धूकर जलने लगी | जैसे ही आग मुंगेरी के बनाये मंजिल पर पहुँची, मुंगेरी फफक कर रो पड़ा | सारे मजदूर महज हो-हल्ला मचा रहे थे | लेकिन मुंगेरी ऐसे रो रहा था जैसे उसकी अपनी कमाई जल…

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Added by savitamishra on October 15, 2016 at 8:00pm — 2 Comments

गुर (बस दो मिनट में )





दो मिनट में


नहीं लिख दी जाती

कोई कविता

जैसे नहीं बनती सब्जी

दो मिनट में बढ़िया

दो मिनट में तो

बनती है बस मैगी

जो सिर्फ पेट भरती हैं |



अपनी संतुष्टि के लिए

भले लिख दो

मिनट, दो मिनट में

कुछ भी…

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Added by savitamishra on October 1, 2016 at 11:43am — 17 Comments

जीवन की पाठशाला (लघुकथा)

आगरा से लखनऊ का छ-सात घंटे का सफ़र | ट्रेन खचाखच भरी हुई थी, पर भला हो उस दलाल का,जिसने सौ रूपये ज्यादा लेकर सीट कन्फर्म करा दी थी | वरना सिविल सेवा परीक्षा देने जाना बड़ा भारी लग रहा था | दोनों ही सहेलियों ने गेट से लगी सीट पर धम्म से बैठ कब्ज़ा जमा लिया था | सामने फर्श पर सामान्य कद-काठी का शरीरधारी, किसी दूसरे ग्रह का प्राणी लग रहा था | मैला-कुचैला सा कम्बल अपने शरीर के चारो तरफ लपेटे बैठा था | रह-रह सुमी उसे हिकारत…

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Added by savitamishra on November 21, 2015 at 10:00am — 11 Comments

सच्ची सुहागन (लघुकथा)

पूरे दिन घर में आवागमन लगा था | दरवाज़ा खोलते बंद करते श्यामू परेशान हो गया था | घर की गहमागहमी से वह इतना तो समझ चूका था कि बहूरानी का उपवास हैं | सारे घर के लोग उनकी तीमारदारी में लगें थें | माँजी सरगी की तैयारी के लिय उसे बार-बार आवाज दे रही थी | सारी सामग्री उन्हें देने के बाद वह खाना खिलाने लगा घर के सभी सदस्यों को | फिर फुर्सत हो माँजी से कह अपने घर की ओर चल पड़ा |

बाजार की रौनक देख अपनी…

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Added by savitamishra on October 29, 2015 at 8:30pm — 5 Comments

~बोल ~

तुम्हारें श्री मुख से

दो शब्द

निकले कि

मैंने कैद कर लिया

अपने हृदय उपवन में !!



अब हर रोज

दिल से निकाल

दिमाग तक लाऊँगी

फिर कंठ तक

फिर मुस्कराऊँगी

चेहरे पर

एक अलग सी

चमक बिखर जाएँगी

बार बार यही

दुहराती रहूंगी

क्योकि

अच्छी यादों को

बार-बार खाद-पानी

चाहिए ही होता है!!



और तब जाके

एक दिन

तैर जायेंगी

सरसराहट …

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Added by savitamishra on October 21, 2015 at 12:06pm — 6 Comments

अन्तर्मन (कहानी)

पेड़ के बगल ही खड़ी हो पेड़ से प्रगट हुई स्त्री ने पूछा , “अब बताओ इस रूप में ज्यादा काम की चीज और खूबसूरत हूँ या पेड़ रूप में |

पेड़ बोला , “खूबसूरत तो मैं तुम्हारे रूप में ही हूँ , पर मेरी खूबसूरती भी कम नहीं | काम का तो मैं तुमसे ज्यादा ही हूँ |”

” न ‘मैं’ हूँ |”

पेड़ ने कहा, ” न न ‘मैं’ ”

पेड़ ने धोंस देते हुए कहा , “मुझे देखते ही लोग सुस्ताने आ जाते हैं |जब कभी गर्मी से बेकल होते हैं |”

“मुझे भी तो |” रहस्यमयी हंसी हंसकर बोली स्त्री

“मुझसे तो छाया और सुख मिलता हैं…

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Added by savitamishra on July 13, 2015 at 12:00pm — 13 Comments

ढाढ़स (लघुकथा)

लैपटाप बेटी के हाथों में देख माता -पिता प्रसन्न थे हो भी क्यों न आखिर चीफ़ मिनिस्टर साहब से जो मिला था | उनकी बेटी पुरे गाँव में अकेली प्रतिभाशाली छात्रों  में चुनी गयी थी |

पूरा कुनबा लैपटाप के डिब्बों में कैद तस्वीरें देखने बैठ गया |

"बिट्टी इ सब का हैं ? लाल-पीला |" माँ पहली बार रंगबिरंगे भोजन को देख पूछ बैठी |

"अम्मा, ये लजीज पकवान हैं | बड़े बड़े होटलों में ऐसे ही पकवान परोसे जाते हैं और घरो में भी ऐसे ही तरह तरह का भोजन करते हैं लोग |"

"और दाल रोटी ?"

"अम्मा, दाल…

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Added by savitamishra on July 6, 2015 at 7:30pm — 19 Comments

पछतावा (लघुकथा )

"बाबा आप अकेले यहाँ क्यों बैठे हैं, चलिए आपको आपके घर छोड़ दूँ | "

बुजुर्ग बोले:

"बेटा जुग जुग जियो तुम्हारे माँ -बाप का समय बड़ा अच्छा जायेगा | और तुम्हारा समय तो बड़ा सुखमय होगा |"

"आप ज्योतिषी हैं क्या बाबा |"

हंसते हुय बाबा बोले - "समय ज्योतिषी बना देता हैं | गैरों के लिय जो इतनी चिंता रखे वह संस्कारी व्यक्ति दुखित कभी नही होता | " आशीष में दोनों हाथ उठ गये |

"मतलब बाबा ? मैं समझा नहीं | "

"मतलब बेटा मेरा समय आ गया | अपने माँ बाप के समय में मैं समझा नहीं कि…

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Added by savitamishra on May 14, 2015 at 11:30am — 20 Comments

सम्मान : लघुकथा

"कुछ सिखाओं अपनी माँ को | शहर में रहते पच्चीसों साल हो गये पर रही गंवार की गंवार |"
" बड़े साहब कितनी बार कहें बैठ जाओ पर ये बैठी नहीं |"
"कइसे बैठती जी, वो 'पैताने' बैठने को कहत रहा | "...सविता मिश्रा

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by savitamishra on April 15, 2015 at 4:30pm — 29 Comments

आगे पीछे : लघुकथा



"कहाँ आगे-आगे बढ़े जा रहे हो जी', मैं पीछे रह जा रही हूँ |"

"तुम हमेशा ही तो पीछे थी"

"मैं आगे ही रही "

"और चाहूँ तो हमेशा आगे ही रहूँ, पर तुम्हारें अहम् को ठेस नहीं पहुँचाना चाहती हूँ समझे|"

"शादी वक्त जयमाल में पीछे ..."

"डाला जयमाल तो मैंने आगे"

"फेरे में तो पीछे रही"

"तीन में पीछे, चार में तो आगे रही न "

"गृह प्रवेश में तो पीछे"

"जनाब भूल रहे हैं, वहां भी मैं आगे थी "

इसी आगे पीछे को लेकर लड़ते -हँसते  पार्क से बाहर निकले और एक दूजे से…

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Added by savitamishra on February 8, 2015 at 10:59am — 24 Comments

गुड़िया

मेरी गुड़िया ,मेरी बच्ची --कह कह शर्माइन बेहोश हुई जा रही थी |

विधायक शर्मा जी फोन-पर-फोन किये जा रहें थे पर अभी तक कुछ पता ना चला था|


ब्रेकिंग न्यूज के नाम से घर-घर न्यूज दिख रही थी कि "कद्दावर नेता की कुतिया किसी दुश्मन ने की गायब"

कुतिया नहीं कहो वर्ना चढ़ बैठेगें किसी ने फुसफुसाया ...|

"विधायक की गुड़िया को किसी ने किया गायब ...| " संभलते हुय पत्रकार…

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Added by savitamishra on February 2, 2015 at 10:30pm — 16 Comments

मन में लड्डू फूटा (लघुकथा)

"भैया डीजल देना"

"कितना दे दूँ भाईसाब ?"

"अरे भैया दे दो दस पन्द्रह लिटर, देख ही रहे हो आजकल लाईट कितनी जा रही है|  रोज-रोज दूकान के चक्कर कौन लगाये|"

"हा भाईसाब इस सरकार ने तो हद कर दी है|" जैसे उसके दुःख में खुद शामिल है दूकानदार

शाम को वही दूकानदार आरती करते वक्त- "हे प्रभु अपनी कृपा यूँ ही बनाये रखना| यदि साल भर भी ऐसे ही…

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Added by savitamishra on October 15, 2014 at 10:30pm — 21 Comments

दोगलापन (लघु कहानी)

"कुछ पुन्य कर्म भी कर लिया करो भाग्यवान, सोसायटी की सारी औरतें कन्या जिमाती है, और तू है कि कोई धर्म कर्म है ही नहीं|"

"देखिये जी लोग क्या कहते है, करते है इससे हमसे कोई मतलब ......"

बात को बीच में काटते हुए रमेश बोले- "हाँ हाँ मालुम है तू तो दूसरे ही लोक से आई है, पर मेरे कहने पर ही सही कर लिया कर|"

नवमी पर दरवाजे की घंटी बजी- -सामने छोटे बच्चों की भीड़ देख सोचा रख ही लूँ…

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Added by savitamishra on October 2, 2014 at 7:00pm — 6 Comments

प्यास (लघुकथा)

फुसफुसाने की आवाज सुन काजल जैसे ही पास पहुँची सुना कि -तुम आ गये न, मैं जानती थी तुम जरुर आओगें, सब झूठ बोलते थे, तुम नहीं आ सकते अब कभी|
"भाभी आप किससे बात कर रही हैं कोई नहीं हैं यहाँ"
"अरे देखो ये हैं ना खड़े, जाओ पानी ले आओ अपने भैया के लिय बहुत प्यासे है|"
डरी सी अम्मा-अम्मा करते ननद के जाते ही भाभी गर्व से मुस्करा दी|

सविता मिश्रा

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by savitamishra on September 24, 2014 at 11:34am — 19 Comments

सिसकियाँ (लघुकथा)

माँ सोनी के कमरे से खूब रोने चीखने की आवाजें आ रही थी, १४ साल की राधा भयभीत हो रसोई में दुबकी रही, जब तक पिता के बाहर जाने की आहट ना सुनी ! बाहर बने मंदिर से पिता हरी की दुर्गा स्तुति की ओजस्वी आवाज गूंजने लगी! भक्तों की "हरी महाराज की जय" के नारे से सोनी की सिसकियाँ दब गयी! पिता के बाहर जाते ही माँ से जा लिपट बोली "माँ क्यों सहती हो?" सोनी घर के मंदिर में बिराजमान सीता की मूर्ति देख मुस्करा दी! अपने घाव पर मलहम लगाते हुए बोली, "मेरा पति और तेरा पिता…

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Added by savitamishra on August 25, 2014 at 2:00pm — 20 Comments

गांधी नोट

अपनी आबरू बेच जब

हाथ में नोट आया

लड़की ने नोट पर

अंकित गांधी के चित्र पर

अपनी बेबस नजरों को गड़ाया

गांधी बहुत ही शर्मिंदा हुए

अपनी खुद की नजरों को

जमीं में गड़ता पाया

नहीं मिला पायें नजर

आंसुओं से डबडबाई नजरों से

देश के हालत पर चीत्कार से…

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Added by savitamishra on August 21, 2014 at 1:00pm — 24 Comments

दिल की सच्चाई

हे प्रभु, सुन !

कर दें अँधेरा

चारों तरफ.. .  

उजाले काटते हैं / छलते है !

लगता है अब डर

उजालें से

दिखती हैं जब

अपनी ही परछाई -

छोटी से बड़ी

बड़ी से विशालकाय होती हुई.

भयभीत हो जाती हूँ !

मेरी ही परछाई मुझे डंस न ले,

ख़त्म कर दे मेरा अस्तित्व !

जब होगा अँधेरा चारों ओर

नहीं दिखेगा

आदमी को आदमी !

यहाँ तक कि हाथ को हाथ भी.

फिर तो मन की आँखें

स्वतः खुल जाएँगी !

देख…

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Added by savitamishra on August 19, 2014 at 2:00pm — 20 Comments

'संस्कार' कहानी

सुमन बदहवास सी घटना स्थल पर पहुंची, अपने बेटे प्रणव की हालत देख बिलखने लगी| भीड़ की खुसफुस सुन वह सन्न सी रह गयी, एक नवयुवती की आवाज सुमन को तीर सी जा चुभी "लड़की छेड़ रहा था उसके भाई ने कितना मारा, कैसा जमाना आ गया ......|" "अरे नहीं, 'भाई नहीं थे', देखो वह लड़की अब भी खड़ी हो सुबक रही है" बगल में खड़ी बुजुर्ग महिला बोली  ....यह सुन सुमन का खून खौल उठा,  और शर्म से नजरें नीची हो गयी| प्रणव पर ही बरस पड़ी "तुझे क्या ऐसे 'संस्कार' दिए थे हमने करमजले, अच्छा हुआ जो तेरे बहन नहीं है| प्राण ..."मम्मी…

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Added by savitamishra on August 16, 2014 at 12:00am — 22 Comments

बलिदानी.....तुकांत कविता

देख तेरे देश की हालत क्या हो गयी बलिदानी

कितना बदल गया है यहाँ हर एक हिन्दुस्तानी|



की क्यों तुने स्वदेश पर मर मिटने की नादानी

अपनों में ही खोया यहाँ हर एक हिन्दुस्तानी|



की क्यों तुने स्वदेश पर मर मिटने की नादानी

अपनों में ही खोया यहाँ हर एक…

Continue

Added by savitamishra on August 13, 2014 at 8:00pm — 9 Comments

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